________________ प्रस्तावना अनंतानंतकालथी एक सनातन नियम छे के शासननी' स्थापना पूर्वे द्वादशांगीनी रचना, त्यारबाद शासनसंघनी स्थापना / आथीज समजाय के जैन-शासननी भव्य इमारतना तांबाना पायारूपे जैनागम छे। संपूर्ण शासननी सुदृढ व्यवस्था आगमज्ञान पर छे। पटलज नहि पण तेनी प्राप्ति माटे : अनेकविध तपयोगवहन करी ते ज्ञान मेलववानी योग्यता मेलवे छे / अने ते ज्ञानमात्रा वधतां पुण्यवान् आत्माओ आचार्य पद पर आरूढ थइ त्रिकालाबाधितशासनन सुकान संभालवा भाग्यशाली बन्या छे। श्रीजिनागमनु अध्ययन नि:श्रेयसपद प्राप्तिना भव्य आदर्शने घरेला आत्माओने अणमोल साधन छे / तेमां कशी अतिशयोक्ति नथी / श्री आगमज्ञान प्राप्तिनी पद्धति अने संरक्षणता / पूर्वकालमा आगमशास्त्रानु अध्ययन मौखिक थतु हतु। बुद्धिना सागर साधुभगवंतो तेने यथावतू याद राखता हता। कदाच स्खलना थाय तो बीजी या त्रीजी वार सांभलीने-अध्ययन करीने स्वनामवत् ते महामृला आगमरत्नोने हृदयमंदिरमा पधरावी जीवनने धन्य बनावता हता। आ ज्ञाननी प्राप्ति माटे लांबा लांबा विहार थता दूर दूर देशामां अनेक मुश्केलीओ वेठीने जता, अने अनेक वाचनाओनेो लाभ लेता हता। तो पण दु:षमकालना विषमप्रभावे मेघावी मुनिवृदनी मेधाना दिनानुदिन क्षीणतानो अनुभव थतां शासनना शिरताज अने उत्सर्ग-अपवादना जाणकार पूज्य देवद्धिगणिक्षमाश्रमण भगवंते वलभीपुरमा ते समयना मुख्य मुख्य 500 आचार्याने भेला करी, अनेकविध पाठोथी मेलवी श्री आगमाने पुस्तकारूढ करवानु महान् कार्य कर्यु / आथी आगमज्ञानप्राप्ति सुलभ बनी एटलुज नहि पण श्री जिनागमज्ञानप्राप्तिनी सरवाणी निरंतर बहेती चालु राखी / तेओश्रीनु आ कार्य जनशासनमां प्राण पूरवासमान थयु एम कहीए तो वधु पडतु नथी ज /