________________ नि:शेषसिद्धान्तविचार-पर्याये निग्गओ आयरिओ जान नियत्ता ता दसाओ न छिजति ( 974 गाथाचूर्णिः / ) इति सूरिणा वस्त्रग्रहणाय गन्तव्यम् / चाउम्प्रामातीय वासासु उउबद्ध मासतीय वा बुट्टा वासातीयं वसमाणे काल उ निरुपम // इति मासकल्पाक्षराणि / सेसं मंडलिराइणिओसुब्भी दुभिदव्याविरोहण करंबेडं मंडलिए भुंजति, एवं सव्वेसिं समया भवइ / गाथा तु तम्हा विहिए भुंजे विष्णंभि गुरुण सेस राइणिओ / भुयइ करंबेऊण एवं समया उ सवेसिं // सागारिउत्ति को पुण काहे कइविही व सो पिंडो / असेजायरो व काहे परिहरियची व सो कस्सा // दोसा वा के तस्सा कारणजाए व कप्पए कम्हि / जयणाए वा काए एगमणेगेसु घेत्तव्यो / / (1138-9) सेन्जायरो पहू वा पहुसंदिट्ठो व होइ कायव्वा / / एगमणेगी व पहु पहुसंदिट्ठों वि एमेव (1944) / जइ जग्गति सुविहिया करिति आवस्सगं तु अण्णस्थ / सेज्जायरो न होइ सुत्ते व कए व सो होइ / / अण्णस्थ व सोऊणं आवस्सग चरिममन्नहिं तु करे / दोण्णि वि तरा भवंति सत्थाइसु अन्नहा भयणा (1148-9) इदं च प्रायशः सार्थादिषु सम्भवति इत्यर्थः / / असइ वसहीए वीसुं वसमाणाणं तराउ भइयव्वा / तत्थण्णत्थ व वासे छत्तछायं च वजाति (115) तण-डगल-छार-मल्लग-सेजा संथार-पीठ-लेवाइ / सेजायरपिंडो सो न होइ सेहो व सोवहिओ / / आपुच्छियमुग्गाहिय वसहीआ निग्गहोग्गहे एगो / पढमाई जाव दिवसं युच्छे वज्जेजऽहोरत्तं // (154-1155) एकशब्दः प्रत्येकं सम्बध्यते // 'पढमाइ जाव दिवसं' ति अणुग्गए सूरे निग्गओ सूरोदयाओ असेजायरमिच्छइ / अन्नो भणइ सूरुगमे