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________________ . 3 श्रावक-द्वादश व्रत चलावे, खान, खुदावे, सुरंग खुदावे यह 'फोडीकर्म' है। 6 दंतवाणिज्य-(दांतका व्यापार) हाथी का दांत, विगैरह बेचने का व्यापार 'दंतवाणिज्य' है। इसका ठेका लेना अत्यंत आरंभ-हिंसा का कारण है। श्रावक ऐसा व्यापार न करे। दांत की बनी बनाई चीजें ले कर तंग हालत में व्यापार करे उसकी जयणा है। ___7 लाखवाणिज्य (लाख आदि का व्यापार)-लाख, साजीखारा, साबुन, सुहागा, मनसील, हरताल विगैरह का व्यापार न करे / खास कर लाखका व्यापार अवश्य वर्जनीय है। 8 रसवाणिज्य-मदिरा मांस तथा घी तैल गुड खांड आदि में चोमासे के दिनो में मक्खी मंकोडा कीडी विगैरह जीवों की बहुत हिंसा होती है इस लिये रसव्यापार न करे / खास कर मद्य मांस का व्यापार श्रावक को वर्जित है। 9 केशवाणिज्य-घेटों बकरा की ऊन, जाट, पक्षियों के रोम, चंवरी गाय के बाल विगैर का बेचना 'केशवाणिज्य' है जो न करना चाहिये / 10 विषवाणिज्य-संखिया, वछनाग, अफीम आदि जहरिली चीजों का व्यापार न करना / 11 यंत्रपीलनकर्म-घाणी कोल्हू विगैरह चला कर तैल रस विगैरह निकालने का काम न करना / 12 निलांछनकर्म-बल, ऊंट विगैरह के नाक फडवाना वछडों को बधिया (खसी-सोई समार) करवाना या इन को
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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