________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह जलाना, कोटवाल की नोकरी, जेलखाने की नोकरी विगैरह निर्दयपने का काम करना यह सब निलांछनकर्म के शामिल है। - 13 दावाग्निकर्म-जंगल में आग लगा कर जलाना यह दावाग्निदान कर्म है। 14 शोषणकर्म-तालाव, बंधा, वाव आदि के जलको नहर द्वारा निकलवा कर खेत पिलाना, इस से जल खाली हो जाता है और लाखों जीव जल विना तडफ कर मरते हैं इस लिये यह 'जलशोषणकर्म' पाप का कारण है। 15 असतीपोषण-कुलटा-व्यभिचारिणी स्त्री का पोषण कर उससे धन पैदा करना या उस आशयसे उस का पालन करना, कुत्ता बिल्ली आदि शिकारी जानवरों का पालन करना यह सब 'असतीपोषण' कहा जाता है। ___यह 15 कर्मादान हैं, याने ज्यादह पापबन्ध के कारण हैं, व्रतधारी इन व्यापारो में न पडे / प्रतिज्ञा... "मैं देवगुरु साक्षिक उपभोग-परिभोग व्रत ग्रहण करता हूं। आजीवन अनन्तकाय बहुबीजादि भोजन और कर्मादानादि व्यापारों का यथाशक्ति त्याग करता हूं।" अतिचार..' (1) सचित्त आहार-सचित्त का त्याग कर बगैर उपयोग के सचित्त को अचित्त समझ कर खावे पीवे, जल पूरा गरम न हुआ हो और उस को पीवे तो यह पहला अतिचार लगता है।