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________________ 72 3 श्रावक-द्वादश व्रत . (15) लाणा (जिसकी सज्जी बनती है) ... (16) लोढा कंद . (17) गिरिकरणी (गिरमिर) कच्छ देश में प्रसिद्ध है। (18) कोमल पत्र (वनस्पति के नये उगते अंकुरे अनंतकाय होते हैं, बढने के बाद वेही प्रत्येक वनस्पति कहलाते हैं) (19) खरसूयाकंद (कसेरु) (20) थेग (जुवार के दाने की तरह का कन्द) (21) हरामोथ (नागर मोथा) (22) लूणी वृक्ष की छाल (23) खिलोडा (24) अमृतवेल (अमरवेल) . (25) मूला (मूली) (26) भूमिस्फोट-(जो सफेद छत्र के आकार में चोमासे में जमीन में से निकलते हैं) (27) बथुए की भाजी (प्रथम उगती हुई) (28) करुहार (29) सूवर वेल (30) पलंक की भाजी (31) कोमल इमली-(जहां तक बीज न पडे वहां तक अनंतकाय) (32) आलु रतालु पिंडालु। इसके सिवाय और भी हैं
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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