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________________ 68 3 श्रावक-द्वादशव्रत जीवों की हिंसा होती है / इस लिये इस को अभक्ष्य समझना चाहिये। 14 रात्रिभोजन-रात में खाना भी अभक्ष्य में गिना गया है। दिन का भोजन सात्विक है और रात्रिभोजन तामसिक-राक्षसी है। इस लिये यह छोडने लायक है। खास कर व्रतधारी को तो रात्रिभोजन का अवश्य त्याग करना चाहिये। 15 बहुबीजफल-जिस में गूदा (गिर) कम और बीज बहुत हों जैसे वेंगण (बुंताक) पंपोटा खसखस बिगैरह, फलों में जो बीज होते हैं वे सब सजीव होते हैं इस वास्ते इन के भक्षण में अधिक जीवों की हिंसा होने से ये 'बहुबीज फल' अभक्ष्य हैं। 16. संधान (अथाणा- अचार ) यह अथागा याने अचार केरी का नींबु का करमदे का आदे का इत्यादि कई किसम का होता है, यह खटाई वाला होने से तीन दिन तक खाने योग्य होता है / जिसमें खटाई न हो वह एक दिन के बाद ही अभक्ष्य हो जाता है, कारण कि उसमें सूक्ष्म त्रस जीव उत्पन्न होने का संभव है। गुजरात में नींबु अमचूर या नींबु मिली मिर्ची के अथाणे को तीन दिन के बाद सूरज के धूप में अच्छी तरह सुखा देते हैं फिर उसको गर्म किये तैल में डाल देते हैं। तेल अचार के ऊपर ऊपर 3-4 उङ्गल तक रहता है / इस हालत में वह अथाणा अभक्ष्य नहीं होता / म
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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