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________________ द्वादश व्रत 3 श्रावक-द्वादश व्रत अपने बगैर न चले तो सांसारिक रूढि समझ कर वह कार्य करे, दिल में हर्ष या खुशी न मनावे / (5) तीव्र अनुराग-पुरुष का स्त्री पर और स्त्री का पुरुष पर हद से ज्यादह प्रेम 'तीव्रानुराग' कहलाता है। व्रतधारी को इस प्रकार के अमर्यादित विषय राग में लीन न होना चाहिये / क्यों कि इस प्रकार का विषयानुराग चोथे व्रत का पांचवाँ अतिचार है। व्रतधारी को विकारों को रोकना चाहिये / ऐसा न करने से इच्छा अत्यंत बढती जाती है और परिणाम स्वरूप अतिक्रम व्यतिक्रम अतिचार और अनाचार तक हो जाते हैं। अति स्त्री प्रसंग से धर्म हानि ही नहीं शरीर हानि भी होती है इस लिये उक्त अतिचार टाल कर श्रावक इस व्रत पर सावित कदम रहे। नियम कृष्णपक्षकी इन तिथिओं में ब्रह्मचर्य रक्तूंगा। शुक्लपक्षकी इन तिथिओं में ब्रह्मचर्य रक्खूगा / प्रतिमास दिन ब्रह्मचर्य पालूंगा। अथवा सर्वथा ब्रह्मचर्य पालूंगा। स्थूल परिग्रहपरिमाण स्वरूप अपनी हकदारी के माल मिलकतका परिमाण कर इच्छा को काबूमें लाना इसका नाम 'परिग्रहपरिमाण' है।
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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