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________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह कि वैसा करने से संतान कम जोर होती है और उस की उमर भी थोडी होती है। प्रतिज्ञा “मैं देवगुरु साक्षिक परस्त्री विषयक स्थूल मैथुन का त्याग करता हूँ। अपनी कायासे आजीवन परस्त्री गमन नहीं करूंगा।" अतिचार-- ___ (1) अपरिगृहीता गमन-जिस के स्वामी नहीं है ऐसी कुंवारी विधवा वैश्या आदि से 'यह दूसरे की स्त्री नहीं है। इस कल्पना से संबन्ध करे तो 'परस्त्री त्यागी' को अतिचार लगे और 'स्वस्त्री-संतोष-व्रतधारी' का व्रतभंग हो / ___ (2) इत्वरपरिगृहीता गमन-थोडे समय के लिये वेश्या आदि को अपनी कर रख ले और अपनी समझ उस से समागम करे तो 'स्वस्त्री संतोषबत' वाले को अतिचार लगे। ... (3) अनंगक्रीडा-काम वासना जगाने की चेष्टा को अनंगक्रीडा कहते हैं। चतुर्थव्रतधारी को जिनसे काम विकार हो ऐसे वचन नहीं बोलने चाहिये और कामोत्तेजक चेष्टा न करनी चाहिये, करे तो अतिचार लगे। (4) परविवाहकरण-अपने पुत्र पुत्री आदि के सिवाय बडाई के खातिर अथवा पुण्य मार्ग समझ कर दूसरों के विवाह शादी करावे तो अतिचार लगता है, जहां तक बन . सके व्रतधारी विवाह जैसे कार्यों में अगुआ न बने, कहीं
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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