________________ - श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 2 भाव अदत्तादान-वर्ण गंध रस स्पर्श आदि तेईस विषय तथा आठ कर्म की वर्गणा यह आत्मा से पर वस्तु हैं इन को ग्रहण करना यह भाव अदत्तादान / / __ प्रकारान्तरसे अदत्तादान के 4 भेद ह-१ स्वामि अदत्त 2 जीव अदत्त 3 तीर्थकर अदत्त 4 गुरु अदत्त / ___ (1) किसी भी चीज को उस के मालिक की आज्ञा सिवाय लेना उस को 'स्वामि अदत्त' कहते हैं। ___ (2) अपने दास या दासी अथवा अन्य किसी भी जीव को उस की इच्छा बगैर दूसरे के सुपुर्द करना लेना 'जीव अदत्त' कहा जाता है, क्यों कि उस में उस के जीव की आज्ञा नहीं होती। ... (3) जिस चीज के लिये तीर्थकर भगवान्ने निषेध किया हो वह नही लेना चाहिये, लेवे तो तीर्थंकर अदत्तचोरी कही जाती है। जैसे मुनि के वास्ते भगवान् ने अशुद्ध आहार लेने का निषेध किया है तथा श्रावक के लिये अभक्ष्य वस्तुका निषेध किया है अगर मुनि और श्रावक इन निषिद्ध चीजों को ग्रहण करें तो 'तीर्थकर अदत्त' लगता है। (4) गुरु की आज्ञा सिवाय जो चीज ग्रहण करे उस को 'गुरु अदत्त' कहते हैं। इस के सिवाय किसी की कुछ भी चीज रास्ते में गिरी हुई मिले तो उस के मालिक का पता लगा कर उस के हवाले कर दे, यदि मालिक का पता न लगे तो उस को धर्मादे कर