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________________ 36 2 जिनपूजाविधि। . . णा धर्म मानने वाले जैन गृहस्थों को ऐसी प्रवृत्ति बंद करने में ही लाभ है। (2) मंदिर में भगवान् का प्रक्षालन (पखाल) सूर्य उदय होने के बाद करना चाहिये जहां तक अंधेरा हो नहीं हो सकता, कारण कि अंधेरे में जीवजंतु का उपयोग नहीं रहता / प्रक्षालन के लिये जल अबोट सींच कर लाना चाहिये वह भी अंधेरे में नहीं बल्के प्रकाश होने पर लाना ठीक है / साथ में यह भी ध्यान रहना चाहिये कि जल का कलश लाने वाला पूजारी जहां तक बन सके खुद स्नान कर शुद्ध कपडे पहन कर जलका कलश लावे / (3) भगवान् के प्रक्षालन अंगलुणे करना तथा केशर पूजा करना इत्यादि सब अंगपूजा का कार्य स्वयं श्रावक ही करे, रावल सेवक आदि पूजारी के पास कराना ठीक नहीं, कारण वे नोकर हैं, उन में भक्तिभाव नहीं होता, पूजारी का काम तो जल का कलश लाना,केशर घोंटना, झाडू निकालना, मंदिर के बरतन साफ सूफ करना इत्यादि है, मगर आज कल श्रावको में प्रमाद बहुत बढ जाने से प्रक्षालन अंगलूगा आदि सब कारोबार पूजारी को सुपुर्द कर देते हैं, जिस से पूजारी जी चाहे जैसा कार्य करे, श्रावक लोग तो जब पूजारी प्रक्षालन विगैरा कुल कार्य कर चुके तब सिर्फ भगवान् के बिंदका लगाने को आ जाते हैं,मगर यह प्रवृत्ति अनुचित है,पूजाभक्ति करना श्रावक का ही फर्ज है, हां अगर कोइ श्रावक ही पूजारी के
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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