________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 35 16 चांदी के छत्र बांधना। 17 बांजे बजवाना। 18 गीत गान करना। 19 नाटक करना / 20 स्तुति बोलना। 21 भंडार वृद्धि करना (चढावा बोल कर देवद्रव्य में वृद्धि करना)। . इस मुजब यथाशक्ति अष्टप्रकारी सतरा भेदी और इक्कीस प्रकारी पूजा कर श्रावक को भगवान् के आगे अपना भक्तिभाव प्रकट करना चाहिये। दर्शन और पूजन सबन्धी कुछ सूचनायें (1) जिनमंदिरमें दर्शन करने का टाइम सूर्य उदय होने के बाद समझना चाहिये अंधेरे में दर्शन करना नहीं कल्प सकता, कई जगह देखा जाता है कि पिछली रात करीब घडीभर रहती है तब जैन श्राविका दर्शन करने को चली जाती हैं, राजपूताना के कई बडे बडे शहरों में तो पर्दा वाली श्राविकायें हमेशा पिछली रात में ही दर्शन करने को जाती हैं, इस के सिवाय किसी जगह ऐसा भी देखा गया है कि पजूसण या नवपद ओली के पर्व दिनो में पिछली एक पहर जितनी रात रहती है उस वक्त दर्शनकी उतावल करने लग जाती हैं, मगर तत्त्वदृष्टि से देखा जाय तो यह प्रवृत्ति बगैर उपयोग की है, जय