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________________ श्रीजैनशान-गुणसंग्रह 15 मल-मूत्र की शंका दूर करने की रीति औदारिक शरीर मल मूत्र का स्थान है इस कारण पोष. हवालों को भी इन शरीर शंकाओं को दूर करना पडता है, परंतु पोषध में यह काम जयणापूर्वक करना चाहिये, इस लिये पौषधिक को अचित्त (गर्म किया हुआ) जल, छोटी कुंडिया और पोंछनी आदि चीजें पहले से ही याच कर रख लेना चाहिये / ___ जब शंका निवृत्ति के लिये जाना हो, पहले पहनने का वस्त्र बदल देना चाहिये, मुहपत्ति कमर में-कंदोरे में भरा देनी चाहिये और चरवले को बायी (डाबी) बगल में रख, कंबल काल में कंबल ओढ़ कर, अन्यथा वगैर कंबल के एकान्त में जहां बैठने की जगह हो कुंडिया को पोंछनी से पोंछ कर उसमें लघुशंका (पैशाब) करे और बाहर. अथवा जहां खुली जगह हो उसको परठ (फेंक) दे / / परठने की जगह जाकर पहले कुंडि को जमीन पर रख मन में "अणुजाणह जस्सुग्गहो" ये शब्द बोले, बाद में परठे और परठने के बाद फिर कुंडी को नीचे रख कर मन में तीन बार 'वोसिरे' यह शब्द बोले / बादमें कुंडि को स्थान पर रख दे। ___बाडा अथवा खुला बडा मैदान हो और मनुष्यों की दृष्टि अधिक न पडती हो तो विना कुंडि के भी लघुशंका निजीव भूमि में की जा सकती है। .
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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