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________________ 470 पोषधविधि। मे राइओ०' इत्यादि पाठ बोल के 'सव्यस्स वि राइअ' इत्यादि कहना, बाद में गुरु पदस्थ हों तो दो वंदन देकर और सामान्य हों तो एक 'खमासमण' देकर 'इच्छकार' और 'अब्भुट्टिओहं' के पाठसे खमाना / अंत में फिर दो वन्दन देकर 'इच्छकारी भगवन् पसाय करी पच्च्चक्खाण का आदेश दीजोजी' कह कर पच्चक्खाण लेना। इसके बाद दो दो खमासमण, इच्छकार, और अन्भुट्टिओहं' के पाठ से बाकी के सर्व मुनिराजों को वंदन करना / 11 जिनदर्शन विधि पोषध लेने के बाद जिनमंदिर दर्शनार्थ अवश्य जाना चाहिये / उत्तरासन कर, कटासन कंधे पर, चरवला बायी बगल में और मुहपत्ति दाहिने (जीमणे ) हाथ में रख कर जीवजयणा पालते हुए अभिगम, निसीहि आदि विधिपालनपूर्वक मंदिर में प्रवेश करना और मंडप में जा दर्शन, स्तुति कर ईर्यावहीप्रतिक्रमणपूर्वक चैत्यवंदनविधि करना, बाद में 'निसीहि' कह कर मंदिर से पीछा पोषधशाला आना। मंदिर पोषधशाला से 100 कदम से अधिक दूर हो तो आकर इरियावही करना और 'गमणा गमणे' कहना, अन्यथा जरूरत नहीं।
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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