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________________ श्रीजैगज्ञान-गुणसंग्रह च्छा० 'बहुवेलं संदिसाहुँ' 'इच्छं' खमा० इच्छा० 'बहुवेल करशुं 'इच्छं' कह कर फिर 'भगवानह' आदि कहके 'अड्डाइज्जेसु' कहना और बाद में सब के साथ देववन्दन करना / 7 देववंदन विधि__ प्रथम खमासमणपूर्वक इरियावही करना, 'लोगस्स' कह के उत्तरासन कर खमा० इच्छा० 'चैत्यवन्दन करूं ?' 'इच्छं' कह कर चैत्यवन्दन, नमुत्थुणं और 'जय वीयराय' (आभवमखंडा) तक कहना, फिर खमा० इच्छा० 'चैत्यवन्दन करूं?' 'इच्छं' कह कर चैत्यवन्दन, नमुत्थुणं, अरिहंतचेइयाणं, अन्नत्थ, 1 नवकार का काउसग्ग और 1 स्तुति, इसी प्रकार लोगस्स, पुक्खरवरदीवड्ढे और सिद्धाणं बुद्धाणं के अंत में एक एक नवकार का काउस्सग्ग और एक एक स्तुति कहनी। चतुर्थ स्तुति कहने के बाद बैठ कर नमुत्थुणं कहना और फिर पहले ही की तरह 'अरिहंतचेइयाणं' आदिसे लेकर 'सिद्धाण बुद्धाणं' और वेयावच्चगराणं' तक के सूत्र और चार स्तुतियां कहनी। ___ दूसरी बार चतुर्थ स्तुति कहने के बाद फिर नमुत्थुणं दोनों जावंति और स्तवन कह के 'आभवमखंडा' तक 'जयवीयराय' कहना / फिर खमा० इछा० 'चैत्यवंदन करूं' 'इच्छं' कह कर चैत्यवंदन और नमुत्थुणं कह कर 'जयवीयराय' संपूर्ण कहना और अविधि आशातना का मिच्छामि दुक्कडं देकर सज्झाय करना।
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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