________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह शोभा मंडपनी भासे भलेरी, कहेतां न आवे पार / नौतम अनुपम रचना रुपाली, जन-मन-रंजनहार रे॥धन्य०।४। भविकजन नर नारी केरा, हैये हरख न माय / थाय कृतार्थ प्रीतेथी पधारी, निरखीने जिनराय रे ॥धन्य०।५। धन्य भूमि मरुधर केरी, धन्य नगर ते वास / धन्य सुभग जन वासी अहीं, ज्या पार्श्वप्रभुना वास रे॥धन्य०।६। श्री सिद्धक्षेत्र सुतीर्थभूमिना, ब्रह्मचर्याश्रम-बाल / प्रीते प्रमुगुणगाय सदा ने, इच्छे सकल जयकार रे ।धन्य०७ 3 गायन (राग-प्रभु भजन कर प्रभु भजन०) गोलनगर धन्य गोल नगर......॥०॥ शोहामणुं पुर शोभे मनोहर, रम्य रसाल भूमि मरुधर // गोल० // 1 // पुनीत सरिता सुखडी केरा, वहे सदाए ज्यां निर्मल जल // गोल० // 2 // पाचप्रभुजीना दरबार दीपे, ज्योति जेनी जगमगे झलहल // गोल० // 3 // श्रीदीपचंदजीसम श्रीमंतो, वसे सेवाभावी स्वार्थ वगर // गोल० // 4 //