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________________ 24 1 देवदर्शनविधि भाव नहीं हो सकता,तो भी यह व्यवहार है कि जिस बिंबकी पहले स्थापना की गई हो वह मुख्य बिंब है इस लिये उसका पूजन पहले किया जाता है / ऐसा करने पर शेष तीर्थंकरों के नायकभाव में कमी नहीं होती। संघाचार भाष्य में भी मूलनायक की पूजा विशेष प्रकार से करने के लिये कहा है"उचिअत्तं पूआए, विसेसकरणं तु मूलबिंबस्स / जं पडइ तत्थ पढम, जणस्स दिट्ठी सह मणेणं // 1 // " अर्थात्-"उचित रीति से सर्व बिंबो की पूजा करनी चाहिये परंतु खास कर मूल बिंबकी, क्यों कि अंदर जाते ही लोगों की दृष्टि और मन पहले उसी पर ( मूल नायक पर) ठहरते हैं।" पुष्पपूजा में विवेक केशर चंदन से पूजा कर चुकने पर भगवान को पुष्प चढाये जाते हैं / पुष्प गुलाब, चंपेली, जाई, जुइ, मरुआ, मोगरा आदि के सुगंधी होने चाहिये / देखिये इस विषय में जिनहर्षसूरि अपने "विंशतिस्थानकविचारामृतसंग्रह' ग्रंथ में क्या फरमाते हैं "न शुष्कैः पूजयेद्देवं, कुसुमैन महीगतैः। न विशीर्णदलैः स्पृष्टै- शुभैर्नाऽविकाशिभिः // 1 // कीटकेनापविद्धानि, शीर्णपर्युषितानि च / वर्जयेदृर्णनाभेन, वासितं यदशोभनम् // 2 // . पूतिगन्धीन्यगन्धीनि, आम्लगन्धीनि वर्जयेत् /
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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