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________________ 390 श्री गोलनगरीय-पार्श्वनाथप्रतिष्ठा-प्रबन्ध - आगे आपने फर्माया कि 'आचार्य विना प्रतिष्ठा नहीं हो सकती' यह मान्यता खरतरगच्छवालों की होना संभव है, क्योंकि तपागच्छीय उपाध्याय धर्मसागरजीने 'औष्ट्रिकमतोसूत्रदीपिका' नामक अपने ग्रन्थमें खरतरगच्छ की मान्यताओं का खण्डन करते हुए लिखा है कि 'आचार्य विना प्रतिष्ठा का निषेध करना न्यूनप्ररूपणात्मक मिथ्यात्व है।' इस के समर्थन में वे कहते हैं ' यह कथन प्रतिष्ठाकल्पादिग्रन्थों से विरुद्ध है। क्योंकि वहां उपाध्याय आदिको भी प्रतिष्ठा-अंजनशलाका करने की आज्ञा दी गई है, और श्रीशत्रुजय माहा. त्म्यमें सामान्य साधु भी प्रतिष्ठा-अंजनशलाका कर सकता है ऐसा प्रतिपादन है।'' 8 अंजनशलाका ही प्रतिष्ठा है आज काल मारवाड में एक रूढि सी हो गई है कि पुरानी मूर्तियां मन्दिरजी में स्थापन करने के विधिविधान को तो प्रतिष्ठा कहते हैं और नवीन मूर्तियों पर संस्कार कर पूज नीय बनाने के विधान को 'अञ्जनशलाका / ' परन्तु असल 1 "आचार्य विना प्रतिष्टानिषेधः प्रतिष्ठाकल्पादिना विरुद्धः / तत्रोपाध्यायादीनामन्यनुज्ञातत्वात् / श्रीशचुंजयमाहा. त्म्ये सामान्यसाधुरपि प्रतिष्ठाकर्तेति / " . . .. (औट्रिकमतोत्सूत्रदीपिका पत्र 5)
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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