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________________ .. श्रीजैनशान-गुणसंग्रह 389 उनका भी महाराज के सामने पूछने का साहस नहीं होता था, परन्तु इस लोकचर्चा से महाराज भी अनजान नहीं थे, इस संबन्ध में आप कहा करते थे कि 'क्या ही अच्छा हो कि लोग हम से रूबरू मिल कर इस विषय की शंका दूर कर दें।' परंतु जब इस विषय में आप को कोई पूछने वाला नहीं मिला तब आपने स्वयं पं. भक्तिसोमजी के पास यह चर्चा छेडी कि क्या अंजनशलाका करने के अधिकारी के विषयमें भी आप को कुछ शंका है ? / इस पर यतिजीने कहा-हां लोगों की बातें सुनने से मैं इस विषयमें संशयग्रस्त हूं और आप से पूछना चाहता था परंतु पूछने का साहस नहीं हुआ, आज आपही ने प्रसंग छेडा है तब मैं भी आप से इस विषय का खुलासा चाहता हूं कि जो यह बात कही जाती है कि आचार्य के विना अंजनशलाका हो नहीं सकती सो इस मैं कुछ शास्त्र का आधार भी है या केवल दन्तकथा मात्र है ? / इस प्रश्न के उत्तरमें आपने फरमाया कि इस कथन में कुछ भी सत्यता नहीं है कि 'आचार्य के सिवा दूसरा कोई अंजनशलाका कर नहीं सकता।' प्रमाण देते हुए आपने कहा-आचारदिनकर ग्रन्थान्तर्गत अंजनशलाका-प्रतिष्ठाविधि में 1 आचार्य, 2 उपाध्याय, 3 साधु, 4 जैन ब्राह्मण और 5 क्षुल्लक ये पांच अंजनशलाकाप्रतिष्ठा करने के अधिकारी बताये हैं।' 1 आचार्यः पाठकैश्चैव, साधुभिनिसक्रियैः / जैनविप्रैः क्षुल्लकैश्च, प्रतिष्ठा क्रियतेऽर्हतः // " (आचारदिनकर)
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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