________________ 343 __.. श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह ___ एह वयण सुणीने चाल्यो, फरी संजममुं मन वाल्यो, हो मुनि / फरी संजम लियो उल्लासे, वेष लेइ गयो जिनपासे, हो मुनि० // 4 // चारित्र नित चोखु पाली, देवलोक गयो देइ ताली, हो मुनिः / तप जप संयम किरिया साधी, घणा जीवने प्रतिबोधी, हो मुनिवर० // 5 // जयविजयगुरुसीस, तस हरख नमे निशदीस, हो मुनिः / - मेरुविजय इम बोले, एहवा गुरुने कुण तोले, हो मुनिवर० // 6 // प्रसन्नचन्द्र मुनिसज्झाय प्रणमुं तुमारा पायं प्रसन्नचन्द प्रणमुं तुमारा रे पाय / आं० / राज छोडी रलीयामणुं रे, जाणी अथिर संसार / वैरागें मन वालीयु रे, लीधो संजमभार प्रसन्न // 1 // शमसाने काउस्सग्ग रही रे, पग उपर पग चढाय / बाहु बेउ उंचा करी रे, सूरजसामी दृष्टि लगाय प्रस० // 2 //