________________ .. श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 325 धन्य छे मुनिवर आपने, धन्य शकडालतात जी। धन्य संभूतिविजय मुनि, धन्य लाछलदे मात जी / मुक्त करी रे मोहजालथी // 32 // आज्ञा दियो रे हवे मुजने, जाउं मुज गुरुपास जी / चोमासु पूरुं थया पछी, साधु छण्डे आवास जी / - रुडी रीते शीयल व्रत पालजो // 33 // दर्शन आपजो मुजने, करवा अमृतपान जी। सूर इन्दु कहे स्थूलभद्रजी, बन्या सिंह समान जी / - धन्य छे मुनिवर आपने // 34 // मूर्ख प्रतिबोध सज्झाय ज्ञान कदी नवि थाय मूरखने, ज्ञान कदी नवि थाय, कहेता पोतार्नु पण जाय, मूरखने // 1 // श्वान होय ते गङ्गाजलमां, सो वेला जो न्हाय / अडसठ तीर्थ फरी आवे पण, श्वानपणुं नवि जाय / मू० // 2 // कर सर्प पयपान करन्तां, शान्तपणुं नवि थाय / कस्तूरी, खातर जो कीजे, वास लसण नवि जाय।मू० // 3 // वर्षाकाले सुग्री ते पक्षी, कपि उपदेश कराय / ते कपिने उपदेश न लाग्यो, सुग्री घर विखराय / मू० // 4 //