________________ 324 4 संज्झायसंग्रह ते सहु भोगवq पडे, मुआ पछी तमाम जी / . अधर्मी प्राणीने मले नही, शरणुं कोई ठाम जी / सार्थक० // 25 // सिंधुरूपी आ संसारमां, मानव मीनरूपधार जी। जञ्जाल जालरूपी गणो, कालरूपी मच्छीमार जी। . सार्थक करो० // 26 // विषय रस वाहालो गणी, कीधा भोगविलास जी। धर्मनां कार्य करू नहीं, राखी भोगनी आश जी / उद्धार करो मुनि माहरो // 27 // व्रत चुकाववा आपनु, कीधा नाच ने गान जी। छेड करी रे मुनि आपनी, बनी छेक अज्ञान जी। . . उद्धार करो० // 28 // श्रेय करो रे मुनिवर मुजने, बतावीने शुभज्ञान जी। धन्य धन्य छे आपने, दीसो मेरुसमान जी। उद्धा० // 29 // घार वरस सुख भोगव्यु, खरची खूब दीनार जी। तो हुं तृप्त थई नही, धिक धिक मुज विकार जी। उद्धा० // 30 // छोडी मोह संसारनो, रूडो शीयल व्रत धार जी। . तो सुख शांति सदा मले, पामो भवजल पार जी / सार्थक करो० // 31 //