________________ 4 सज्झायसंग्रह श्रीस्थूलभद्र सज्झाय 2 ( देशी-भेष रे उतारो राजा० .) वेष स्वामी जोइ आपनो, लागी मारा तनडामां लाय जी। अणघायु रे स्वामी आ शुं कयु, लाजे सुन्दर काय जी। कोणे रे धुतारे तमने भोलव्या // 1 // आवी खबर जो होत तो, जावा देत नही नाथ जी। छेतरी छेह दीधो मने, पण छोडूं नही साथ जी। - कोणे रे धुतारे० // 2 // बोध सुणी सुगुरु तणो, लीधो संजमभार जी। मात पिता परिवार सहु, झूठो आल पंपाल जी। नथी रे धुतारे मने भोलव्यो / / 3 / / एह जाणी कोश्या सुन्दरी, धर्यो साधु नो वेष जी। . आव्यो गुरुनी आज्ञा लई, देवा तने उपदेश जी। नथी रे धुतारे० // 4 // काले सवारे भेगा रही, लीधां सुख अपार जी। ते मने बोध देवा आविया, जोग धरीने आ वार जी। जोग रे स्वामी जी अहीं नही रहे // 5 // कपट करीने मने छोडवा, आव्या तमे निरधार जी। . पण छोडूं नही कदी नाथ जी, नथी नारी गमार जी। जो रे० // 6 //