________________ 4 सज्झायल 316 4 सज्झायसंग्रह कहो मुनिवर जव क्यां गया, कहो ने. केणे लीधा / मुनि उत्तर आपे नही, तव चपेटा दीधा / धन० // 5 // मुनिवर उपशमरसभर्या, पंखी नाम न भाषे / कोप करीने इम कहे, जब छे तुम पासे / धन० // 6 // जव चोर्या राजातणा, तूं तो मोटो चोर। . आला चर्मतणो करी, बांध्यो मस्तक दोर / धन० // 7 // नेत्रयुगलतणी वेदना, निकलीया ततकाल / केवलज्ञान ते निर्मलं, पामी कीधो काल / धन० // 8 // शिव नगरी ते जइ चढयो, एहवो साधु सुजाण / गुणवंतना गुण जे जपे, तस घर कोड कल्याण / धन०॥९॥ नव कन्या तेणे तजी, तजी कंचन कोडी / नव पूरवधर वीरना, प्रणमुं कर जोडी। धन० // 10 // सिंहतणी परे आदरी, सिंहनी परे शूरो / संयम पाली शिव लही, जस जगमें पूरो। धन० // 11 // भारी काटतणी तिहां, उंचेथी नाखे / धडकी पंखी जव वम्या, ते देखी आंखे / धन० // 12 // तव सोनी मन चिंतवे, की, खोटुं काम / वात राजा जो जाणशे, तो टालशे ठाम / धन० // 13 // तव ते मनमां चिंतवे, भयथी निजहाथे / सोवनकार दीक्षा लिये, निज कुटुंब संघाते। धन // 14 // श्रीकनकविजय वाचकवरु, शिष्य बोले राम / साधुतणा गुण गावतां, लहिये उत्तम ठाम / धन० // 15 //