________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह एह संसार स्वरूप विचारी, सारी अकल करीजे / जेणे प्राणी थावे सुखियो, सो विधि मनमें धरीजे रे प्राणी / आ० // 16 // _ जो वांछो सुख कीर्ति इण भव, पर भव शिवपुर वास / दान शीयल तप भावना भेदे, करो जिनधर्म उल्लास रे प्राणी। आ० // 17 // वाचकवर श्री सुमति विजय गुरु, नेमविजय शिशु भाखे। सो जिनधर्म करो मन शुद्धे, दुर्गति पडतां राखे रे प्राणी / आ० // 18 // श्रीमेतारज मुनि सज्झाय (सोना रूपा के सोगठे यह देशी) धन धन मेतारज मुनि, जेणे संयम लीधो / जीवदयाने कारणे, तेणे कोप न कीधो / धन० // 1 // मासखमणने पारणे, गोचरीये जाय / सोवनकार तणे घरे, पहोता मुनिराय / धन० // 2 // सोवन जव श्रेणिकना, ऋषि पासे मुकी / घर भीतर ते नर गयो, एक वात न चुकी। धन // 3 // जव सघला पंखी गले, मुनिवर ते देखे / तव सोनी घर आवियो, जब तिहां नहीं देखे / धन०॥४॥