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________________ 284 3 स्तवनसंग्रह गा रहा हूं प्रेम से, प्रभु गुण प्रभु के सामने / 'प्राण' ही होवे खुशी, ओरों को रिझा कर क्या करूं // 5 // छोड जिनवर को०॥ जिन-स्तवन है जगत में नाम ये रोशन, सदा तेरा प्रभु / तारते उसको सदा जो, ले शरण तेरा प्रभु // लाख चोरासी में घेरा, कर्मोने मारा मुझे। ले बचा अब तो सहारा, है मुझे तेरा प्रभु / है० // 1 // सेंकडों को तारते हो, मेहेर की करके नजर / क्यों नहीं तारा मुझे है, क्या गुना मेरा प्रभु // है जगत में // 2 // हाल जो तन का हुआ है, आप विन किसको कहूं / मोहराजाने मुझे, चारों तरफ घेरा प्रभु॥ . है जगत में० // 3 // आप से हरदम तिलक की, तो यही अरदास है। . आप चरणों में रहे, मेरा सदा डेरा प्रभु॥ . है जगत में // 4 //
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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