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________________ 282 3 स्तवनसंग्रह मानव भव अब पायो रतन / अवतो. 0 // 1 // द्रव्य भाव से पूजा प्रभुकी, महानिशीथे जिनवरवचन / अवतो // 2 // गृही को पूजा दोनों ही सुंदर, भाव पूजासे साधु लगन / अबतो 0 // 3 // अष्ट द्रव्य से द्रव्य पूजा है, भाव पूजा करो प्रभु नमन / अब तो 0 // 4 // जिनप्रतिमा जिन सरखी मानो, आतम वल्लभ तारन तरन / अब तो प्रभुजी का // 5 // श्री परमात्मस्तवन सकल समता सुरलतानो, तूंही अनोपम कंद रे। तूंही कृपारस कनक कुंभो, तूंही जिणंद मुणिंद रे // 1 // प्रभु तूंही तूंही तूंही तूंही तूंही करता ध्यान रे / तुज स्वरूपी जे थया, तेणे ला ताहरु तान रे। प्रभु०॥२॥ तूंही अलगो भव थकी पण, भविक ताहरे नाम रे / पार भवनो तेह पामे, एह अचरिज ठाम रे / प्रभु० // 3 // जन्म पावन आज माहरो, निरखियो तुज नूर रे / भवो भव अनुमोदना जी हुओ आप हजूर रे / प्रभु०॥४॥
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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