________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 281 सामान्य जिन स्तवन (राग कवाली) गतास्ते दुःखमयदिवसा, गता सा दीनता कष्टा / समाप्ताऽनादिभवयात्रा, गतोऽस्मि स्वं पदं कुशली॥१॥ अहो संसारकान्तारे, मयाऽद्य भ्राम्यताऽदर्शि / जगन्धितकारिसबुध्धि,-र्जिनाख्यः सार्थपतिरेषः // 2 // अलोक्याऽऽलोकनाऽपूतं, मदं दृष्टियुगमद्य / पवित्रीभावमापन्नं, जिनेश्वर दर्शनाद् भवतः॥३॥ त्वदीया भक्तिरल्पापि, विधत्ते पातकं विफलम् / यथा क्लवो दारू,-चयं क्षणमात्रतो दहति // 4 // भव दाताऽथवा कृपण,-स्तथापि मे त्वमेवासि / तवाग्रे सत्यमिति भाषे, कदाचिन्नैव याचेऽन्यम् // 5 // न मेऽर्थो वैबुधैर्लाभ, न वा भूपालभोगाद्यैः / इदं तु याच्यते भगवन् ! वसेर्मम मानसे सततम् // 6 // यदि त्वन्नामदीपोऽयं, मदीयं द्योतयेद् हृदयम् / तदा निजरूपसंसिध्धे,-भवेत्कल्याणपदगमनम् // 7 // सामान्य जिन स्तवन . . अब तो प्रभुजी का लेलो शरन, लेलो शरन प्यारे लेलो शरन / अबतो // आरज देश उत्तम कुल जाति,