________________ 260 . 3 स्तवनसंग्रह लहत अपूरव भावथी, इण रीते हो तुम पद विशराम, पर // 4 // त्रिकरण जोगे वीन, सुखदायी हो शिवादेवीनंद / चिदानंद मनमें सदा, तुमे आवो हो प्रभु नाणदिणंद, पर०॥५॥ श्री नेमिनाथ स्तवन (तर्ज जिनमत का डंका०) आनंद का डंका दुनिया में, बजवा दिया नेमि लालेने / ब्रह्मचर्य पराक्रम यादव में, बतला दिया नेमि लाले ने // प्रभु आयुधशाला में जा करके, पंचायन शंख को पूर दिया / सुनते ही गिरधर आन खडे, बजवा दिया नेमि०॥आ०॥१॥ श्री नेमिके बलको देखन को, श्रीकृष्णने लंबा हाथ किया। गोपीयन के सन्मुख गिरिधर को, शर्मा दिया नेमि० आ०२॥ फिर जान चढी आडंबर से, तोरण से स्थको फेर दिया / पशुअन के कारण राजुल को, छटका दिया नेमि०। आ०॥३॥ दीक्षा का अवसर जान प्रभु, निज मात पितादिक को समझाया / एक वर्ष लगे दान कांचन का, दिलवा दिया नेमि० आ०॥४॥ एक सहस्र पुरुष संग संजमले, सर्वज्ञ पद को प्राप्त किया। कर्मों का लश्कर जीत लिया, शिवपद का नेमि आ० // 5 // पृथ्वी तल को पावन कर प्रभु, शाश्वत सुख को प्राप्त किया। पर तिरिया परधन नहीं लेना, फर्मा दिया नेमि०॥ ...... . आनंद का॥६॥