________________ 257 . श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 257 कोमल शय्या छोड के जस०, . कुण बेठे धरिके शूल, धुंघट० / म० // 3 // प्रभुकी मूरति मेरे मन वसी जस०, सो तो विपराई विसरे न, घुघट० / दर्शन प्रभुमुख देख के जस०, हम पावन कीने नेन, धुंघट० / मनमोहन० // 4 // जन्म कृतारथ मैं कर्यो जस०, जब पायो ऐसो ईश धुंघट० / . विमलविजय उवझाय को जस०, एम राम कहे शुभ शीस धुंधटपट खोलेंगे, मनमोहन मल्लिनाथ को जस बोलेंगे. // 5 // श्री मुनिसुव्रतजिनस्तवन (इडर आंबा आंबली रे यह देशी) मुनिसुव्रत कीजे. मया रे, मनमाने धरी महेर / महेर विहूणा मानवी रे, कठिन जणाये कहेर जिनेसर तुं जगनायक देव, तुज जगहित करवा टेव, जिने // . ____अरहट क्षेत्रनी भूमिकारे, सिंची. कृतारथ होय / धाराधर सघली धरा रे, उद्धरवा सज जोय, जिनेसर० // 2 // ते माटे अश्व उपरे रे, आणी मनमां महेर / आपे आव्या आफणी रे, बोधवा भरुअच्छ शहेर, जिनेसर० // 3 //