________________ 250 3 स्तवनसंग्रह प्रभु लाख वरस चोथे भागे, व्रत लीधुं छे / प्रभु पाम्या केवल ज्ञान, कारज सीधुं छे // 4 // धनुष चालीसवें ईशनु, तनु सोहे छे, प्रभु देशना ध्वनि वरसंत, भवि पडिबोहे छे // 5 // भक्तवत्सल महिमानिधि, जन तारे छ / बुडतां भवजलमाहे, पार उतारे छे // 6 // सुमतिविजय गुरु नामथी, दुख नाशे छ / कहे रामविजय जिनध्यान, नवषिधि पासे छे // 7 // श्री शांतिनाथ स्तवन - सुणो शांतिजिणंद सोभागी, हुं तो थयो छु तुम गुणरागी। तुमे नीरागी भगवंत, जोतां किम मलशे तंत। सुणो०॥१॥ हुं तो क्रोध कषायनो भरियो, तुं तो उपशम रसनो दरियो। हुं तो अज्ञाने आवरियो, तुं तो केवल कमला. वरियो। सु० // 2 // हुं तो विषयारसनो आशी, तें तो विषया कीधी निराशी। हुं तो कर्मने भारे भार्यो, तें तो प्रभु भार उतार्यो / सु० // 3 // हुं तो मोहतणे वश पडियो, तुं तो सघला मोहने नडियो / हुं तो भवसमुद्रमा खुतो, तुं तो शिवमंदिरमा पहोतो। सु० // 4 //