________________ 245 श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह श्री विमलनाथ स्तवन (नमो रे नमो श्री शत्रुजय गिरिवर यह देशी) सेवो भविया विमल जिनेसर, दुलहा सजनसंगा जी। . एहवा प्रभुनुं दरिसण लेबु, ते आलसमांहे गंगा जी। सेवो० // 1 // अवसर पामी आलस करशे, ते मूरखमां पहेलो जी। भूख्याने जेम घेवर देतां, हाथ न मांडे घेलोजी। सेवो० // 2 // भव अनंतमां दर्शन दीठं, प्रभु एहवा देखाडे जी / विकटग्रंथि जे पोलि पोलियो, कर्मविवर उघाडे जी / सेवो० // 3 // तत्त्वप्रीति करी पाणी पाए, विमलालोके आंजी जी। लोयण गुरु परमान्न दिये तव, भर्म नाखे सवि भांजी जी। सेवो० // 4 // भर्म भागो तव प्रभुसुं प्रेमे, वात करुं मन खोली जी। सरल तणे जे हइडे आवे, तेह जणावे बोली जी।सेवो० // 5 // श्री नयविजयविबुधपयसेवक, वाचकजस कहे साचं जी। कोडि कपट जो कोइ दिखावे, तो प्रभु विण नहीं राचुं जी। सेवो० // 6 //