________________ श्रीजैनशान-गुणसंग्रह 231 कोकिल कल कूजित करे, पामी मंजरी हो पंजरी सहकार के। ओछा तरुवर नविगमे, गिरुआशुं हो होय गुणनो प्यार के, अ०॥३॥ कमलिनी दिनकर कर ग्रहे, वली कुमुदिनी हो धरे चंदसुं प्रीतके / गौरी गिरिश गिरधर विना, नवि चाहे हो कमला निज चित्त के अ० // 4 // तिम प्रभुसुं मुज मन रम्युं, बीजासुं हो नवि आवे दाय के / श्रीनयविजयविबुधतणो, वाचकजस हो नित नित गुण गाय के, अ० // 5 // श्री संभव जिन स्तवन संभव जिनवर वीनति, अवधारो गुण ज्ञाता रे। खामी नही मुज खिजमते, कदीय होशो फल दाता रे, संभव० // 1 // कर जोडी ऊभो रहुं, रात दिवस तुम ध्याने रे / जो मन मां आणो नही, तो शुं कहिये छाने रे, संभव० // 2 // खोट खजाने को नही, दीजिये वांछित दानोरे / करुणा नजर प्रभुजी तणी, वाधे सेवक वानो रे, संभव० // 3 //