________________ 230 3 स्तवनसंग्र . मारे तो आधार रे साहिब रावलो, ... अंतर्गत नुं प्रभु आगल कहुं गुझ जो, प्री० // 2 // साहेब ते साचो रे जगमा जाणिये, सेवकनां जे सहेजे सुधारे काज जो। एहवे रे आचरणे केम करीने रहुं, .. बिरुद तमारू तरण तारण जहाज जो / प्री० // 3 // तारकता तुज माहे रे श्रवणे सांभली, ते भणी हुं आव्यो छु दीनदयाल जो / तुज करुणानी लहेरे रे मुज कारज सरे, शुं घणुं कहीये जाण आगल कृपाल जो, प्री० // 4 // करुणादिक कीधी रे सेवक ऊपरे, भवभय भावठ भांगी भक्ति प्रसन्न जो। मन वांजित फलियारे जिन आलंबने, , कर जोडीने मोहन कहे मन रंग जो, प्री० // 5 // श्री अजितनाथ जिन स्तवन अजित जिणंदशं प्रीतडी, मुज न गमे हो बीजानो संग के। मालती फूले मोहीयो, किम बेसे हो बावल तरु भंग के, अ०॥१॥ गंगा जल मां जे रम्या, किम छिल्लर हो रति पामे मराल के। सरोवर जलधर जल विना, नवि चाहे हो जल चातक बाल के, अ० // 2 //