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________________ 186 5 विविध विचार सकती है, इस के विपरीत जो चंद्र और तारा प्रतिकूल हों तो रोगी के बचने की आशा छोड देनी चाहिये / ऊपर के मृत्युयोग के समय यदि चंद्र रोगी की जन्म राशिका वा जन्मराशि से आठवीं राशि का हो, अथवा जन्म लग्न की राशिका हो, अथवा किसी भी राशिका होते हुए भी रोगोत्पत्ति की लग्रकुंडली में वह-२-८-१२ वें भुवन में बैठा हो तो रोगी की अवश्य मृत्यु कहनी चाहिये / . ऊपर त्रिक योग दिया है उस में नक्षत्र 11 लिये गये हैं, परंतु नीचे लिखे 7 नक्षत्र अकेले ही मृत्युदायक कहे गये हैं / यदि इन नक्षत्रों में से किसी एक नक्षत्र में मनुष्य बीमार पडा हो और उस समय चंद्र अथवा तारा प्रतिकूल हो तो रोगी का बचना कठिन हो जाता है। वे सात मृत्युकारक नक्षत्र नीचे मुजब हैं- . ___आर्द्रा, अश्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढा और पूर्वाभाद्रपद ये सात नक्षत्र रोगी के प्राणघातक हैं / इन में जिस को रोग उत्पन्न होता है वह बडा कष्ट पाता है और चंद्रादि की प्रतिकूलता में प्राणमुक्त ही हो जाता है। नक्षत्रों से रोगी का कष्टकाल प्रमाण- . ___ कष्ट से रोगनिवृत्तिअनुराधा और रेवती इन नक्षत्रों में रोगोत्पत्ति हुई हो
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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