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________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 165 लोग विषय के जानकार न होते हुए भी अभिमान के वश अज्ञता छिपाने के लिये कुछ न कुछ अंडबंड उत्तर दे ही देते हैं, वे यह तो जानते ही नहीं कि इस विषय में कई अपवाद और परिहार भी होते हैं, सिर्फ राशि या वर्ग आदि गिन कर कह देते हैं कि तुम्हारे लिये अमुक अमुक भगवान की मूर्ति अनुकूल हैं और वे पूछने वाले दृष्टि राग से या तो खोटी प्रसिद्धि के वश अंधे हो कर उस असत्य बात को भी सत्य मान लेते हैं / यदि पूछने वाले किसी धारणागतियंत्र-वेत्ता विद्वान् के पास पूछ कर आये हैं और कहते हैं कि अमुक महा राज ने तो ये ये नाम अनुकूल बताये हैं तो वे अर्धदग्ध तुरंत पंचांग टटोलने लगते हैं और बताये हुए नामों के साथ कहीं प्रीतिनवपंचम, प्रीतिषडष्टक या प्रीति दुआबारह जैसा होता है तो कह बैठते हैं-देखो इस में फलां फलां दोष है / बस उस अर्धदग्ध की बात से लोगों के दिल में शंका उत्पन्न हो जाती है और यदि मूर्ति ले आये हैं तब तो वे निरर्थक पश्चात्ताप करते हैं और मूर्ति लानी होती है तो वे अनेकों के पास खाक छानते फिरते हैं और तरह तरह की बातें सुन कर संशयाकुल होते हैं। बस इन खराबियों को दूर करने और अर्धदग्धों को सबक देने के लिये ही यह लेख लिखना पड़ा है। मुः लेटा, (मारवाड). ता. 16-10-34. / मुनि कल्याणविजय ,
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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