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________________ 164 5 विविध विचार नाथ का वर्ग उंदर / बिल्ली उंदर में यद्यपि वैर है परन्तु यहां निर्बल का वर्ग सबल और सबल का वर्ग निर्बल होने से वर्ग वैर संबन्धी कुछ भी दोषापत्ति नहीं है। . ऊपर लिखे मुजब योनि, गण, राशि और वर्ग विषयक दोषों का तो परिहार है परंतु नाडीवेध और लेनादेनी के विषय में कुछ भी अपवाद नहीं है इसलिये नाडीवेध अवश्य वर्जना चाहिये और लेना देनी के विचार में थोडा बहुत भी देव का धनिक लेनदार होना चाहिये न कि देनदार। _____ऊपर नामा जोडा देखने संवन्धी छः बातों और उन के अपवादों का जो दिग्दर्शन कराया है उसको समझ कर ध्यान में रखना चाहिये / और इन सभी बातों को दृष्टि में रख कर किसी भी गाम नगर या व्यक्ति के साथ जिन बिंब का नामा जोडा देखना चाहिये / ऐसा करने वाले कभी धोखा नहीं खायेंगे। आज कल श्रावक लोगों में जान अनजान की परीक्षा न होने से अथवा दृष्टिराग के कारण वे हर किसी को ये बातें पूछ बैठते हैं और अर्धदग्ध मिथ्याभिमानी साधु और यति यदि धनिको मार्जारः स्याजिनस्योन्दुरः स्यात्तदा न दोषो, विपर्यये तु दोषः / एवमन्यत्रापि भाव्यम् / " _ (धारणागतियन्त्रआम्नाये) 1 "नाडिवेधश्चात्र सर्वत्र टालित एव / " (धारणा ग. यं. आम्नाये )
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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