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________________ 3 श्रावक-द्वादश व्रत ..3 वचन या दृष्टिका दोष जिसमें न टले उसको देशब्रह्मचर्य पौषध कहते हैं और सर्वथा ब्रह्मचर्य रखना उसको सर्व ब्रह्मचर्य पौषध कहते हैं। 4 सर्वथा व्यापार का त्याग करना यह सर्वअव्यापार पौषध और एकाद व्यापार खुला रहे वह देश अव्यापार पौषध है। प्रतिज्ञा "मैं देवगुरुसाक्षिक पौषधोपवास व्रत स्वीकार करता हूं। धारणा मुजब यथाशक्ति पौषधोपवास करूंगा।" अतिचार---- (1) अप्पडिलेहियदुप्पडिलेहिय-सिज्जासंथारक-जिस पर शयन करे उस पथारी की पडिलेहणा न करे तो पहला अतिचार। (2) अपमज्जियसंथारक-संथारा बराबर न पूंजे जीवजयणा न रक्खे तो दूसरा अतिचार / (3) अप्पडिलेहिय स्थंडिलभूमि-लधुनीति या बडी नीति की जगह बराबर दृष्टि से न देखे जीवरक्षा न करे तो तीसरा अतिचार। (4) अपमज्जियपासवणपत्त-लघुनीति का कुंडा या पाला ठीक न पूंजे तो चौथा अतिचार / . (5) पोसहविहिविवरीय-पोषध में भूख लगने पर खाने की चिंता करे याने पोसह पारने के बाद अमुक चीज तयार
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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