SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आयारो सु. 2 अ. 3 उ. 1 65 // 720 // स भिक्खू वा 2 से जं पुण जाणिज्जा गाम वा जाव रायहाणिं वा, इमंसि खलु गामंसि वा रायहाणिंसि वा महई विहारभूमी महई वियारभूमी सुलभे जत्थ पीढफलगसेज्जासंथारए सुलभे फासुए उंच्छे अहेसणिज्जे णो जत्थ बहवे-समण जाव उवागया उवागमिस्सति य अप्पाइण्णा वित्ती जाव रायहाणिं वा तओ संजयामेव वासावासं उबल्लिएज्जा // 721 // अह पुण एवं जाणिज्जा चत्तारि मासा वासावासाणं वीइकंता हेमंताण य पंचदसरायकप्पे परिवुसिए अंतरा से मग्गा बहुपाणा जाव संताणगा णो जत्थ बहवे समण जाव उवागया उवागमिस्संति य सेवं णच्चा णो गामाणुगामं दूइजेजा।।७२।।अह पुण एवं जाणिजा चत्तारि मासा वासा वासाणं वीइकंता हेमंताण य पंच-दस-रायकप्पे परिवुसिए, अंतरा से मग्गा अप्पंडा जाव असंताणगा बहवे जत्थ समण जाव उवागमिस्संति य सेवं णच्चा तओ संजयामेव गामाणुगाम दूइज्जिज्जा / / 723 // से भिक्खू वा 2 गामाणुगामं दूइज्जमाणे पुरओ जुगमायं पेहमाणे दठूण तसे पाणे उद्धटुं पायं रीए ज्जा साहट्ट पायं रीएन्जा उकि वप्पपायं रीए जा तिरिच्छं वा कटु पायं रीएजा सइ परक्कमे संजयामेव परिक्कमेजा णी उज्जुयं गच्छेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दइजेजा // 724 // से भिक्खू वा 2 गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाणाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा उदए वा मट्टिया वा अविद्धत्थे सइ परक्कमे जाव णो उज्जुयं गच्छेन्जा, तओ संजयामेव गामाणुगाम दूइज्जेज्जा / / 725 // से भिक्खू वा 2 गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से विरूवरूवाणि पचंतिगाणि दस्सुगाययणाणि मिलक्खूणि अणायरियाणि दुस्सण्णप्पाणि दुप्पण्णवाणिजाणि अकालपडिबोहीणि अकालपरिभोईणि सइ लाढे विहाराए संथरमाणेहिं जणवए हिं णो विहारवत्तियाए पवजेजा गमण!ए केवली बूया 'आयाणमेयं' ते णं बाला "अयं तेणे अयं उवचरए अयं तओ आगए" त्ति कटु तं भिक्चु अक्कोसेज्ज वा जाव उद्दवेज वा वत्थं पडिगगह कंबलं पायपुंछणं अच्छिदेज वा भिंदेज वा अवहरिज वा, परिहविज्ज वा, अह भिक्खूणं पुव्योवइट्ठा पइण्णा जाव ज णो तहप्पगाराणि विरूवरूवाणि पञ्चतियाणि दस्सुगाययणाणि जाव विहारवत्तियाए णो पवज्जेजा गमणाए, तओ संजयामेव गामाणुगाम दूइजेजा // 726 // से भिक्खू वा 2 गामाणुगामं दूइज्जमाणे * अंतरा से अरायाणि वा, गणरायाणि वा, जुवरायाणि वा, दोरजाणि वा, वेरजाणि वा, विरुद्धरजाणि वा, सइ लाढे विहाराए संथरमाणेहिं जणवएहिं णो विहारवत्ति
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy