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________________ भगवई स. 6 उ. 7 555 पलिमंथगमाईणं एएसि णं धण्णाणं जहा सालीणं तहा एयाणिवि, णवरं पंच संवच्छराई, सेसं तं चेव / अह भंते ! अयसिकुलुंभगकोद्दवकंगुवरगरालगको. दूसगसणसरिसवमूलगबीयमाईणं एएसि णं धण्णाणं, एयाणिवि तहेव, णवरं सत्त संवच्छराई, सेसं तं चेव // 245 // एगमेगस्स गं भंसे ! मुत्तस्स केवइया ऊसासद्धा वियाहिया ? गोयमा ! असंखेज्जाणं समयाणं समुदयसमिइसमागमेणं सा एगा आवलियत्ति पवुच्चइ, संखेज्जा आवलिया ऊसासो संखेज्जा आवलिया णिस्सासो-हवस्स अणवगल्लस्स, णिरुवकिट्ठस्स जंतुणो / एगे ऊसासणीसासे, एस पाणत्ति वुच्चइ // 1 // सत्त पाणणि से थोवे, सत्त थोवाइं से लवे / लवाणं सत्तहत्तरिए, एस मुहुत्ते वियाहिए // 2 // तिण्णि सहस्सा सत्त य सयाई तेवतरि च ऊसासा / एस महत्तो दिट्ठो सन्वेहि अणंतणाणीहिं // 3 // एएणं मुहुत्तपमाणेणं तीसमुहुत्तो अहोरत्तो, पण्णरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासे, दो मासा उऊ, तिण्णि उउए अयणे, दो अयणे संवच्छरे, पंचसंवच्छरिए जुगे, वीसं जुगाई वाससयं, दस वाससयाई वाससहस्स, सयं वासहस्साणं वाससय. सहस्सं, चउरासीइं वाससयसहस्साणि से एगे पुष्वंगे, चउरासीइं पुवंगसय. सहस्साई से एगे पुव्वे, एवं 2 तुडिए 2 अडडे 2 अववे 2 हूहूए 2 उप्पले 2 पउमे 2 णलिणे 2 अत्थणिउरे 2 अउए 2 पउए य 2 णउए य 2 चलिया 2 सीस. पहेलिया 2 एताव ताव गणिए एताव ताव गणियस्स विसए, तेण परं? उव. . मिए / से कि तं उवमिए ? 2 दुविहे पण्णत्ते तंजहा-पलिओवमे य सागरो. धमे य, से कि तं पलिओवमे ? से कि तं सागरोवमे ? / सत्थेण सुतिक्खणवि छेत्तुं भेत्तुं च जं किर ण सक्का / तं परमाणु सिद्धा वयंति आई पमाणाणं // 1 // अणताणं परमाणुपोग्गलाणं समुदयसमिइसमागमेणं सा एगा उस्सण्हसण्हियाइ वा सहसण्हियाइ वा उड्डरेणूइ वा तसरेणूइ वा रहरेणूइ वा वालग्गेइ वा लिक्खाइ वा जूयाइ वा जवमझेइ वा अंगुलेइ वा, अट्ठ उस्सण्हसण्हियाओ सा एगा सहसण्हिया, अट्ठ सहसण्हियाओ सा एगा उड्डरेणू, अट्ठ उड्डरेणूओ सा एगा तसरेणू , अट्ट तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ से एगे देवकुरु. * उत्तरकुरुगाणं मणूसाणं वालग्गे, एवं हरिवासरम्मगहेमवयएरण्णवयाणं पुव्व. विदेहाणं मणूसाणं अट्ठ वालग्गा सा एगा लिक्खा, अट्ट लिक्खाओ सा एगा जूया, अट्ठ जूयाओ से एगे जवमज्झे, अट्ठ जवमझाओ से एगे अंगुले, एएणं अंगुल.
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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