________________ आयारो सु. 1 अ. 9 उ. 3, 4 33 अहियासए सया समिए, फासाई विरूवरूवाई अरई रई अभिभूय, रीयइ माहणे अबहुवाई।।४९२॥स जणेहिं तत्थ पुच्छिसु, एगचरा वि एगया राओ; अव्वाहिए कसाइत्था, पेहमाणे समाहिं अपडिण्णे // 493 / / अयमंतरंसि को एत्थ, अहमंसित्ति भिक्खू आहटु; अयमुत्तमे से धम्मे तुसिणीए कसाइए झाइ // 494 // जंसिप्पेगे पवेयंति, सिसिरे मारुए पवायंते; तंसिप्पेगे अणगारा, हिमवाए णिवायमेसंति // 495 / / संघाडिओ पवेसिस्सामो. एहा य समादहमाणा, पिहिया वा सक्खामो, अइदुक्खे हिमगसंफासा // 496 / / तसि भगवं अपडिण्णे, अहे वियडे अहियासए दविए, णिक्खम्म एगया राओ ठाइए भगवं समियाए ||497 // एस विही अणुकंतो माहणेण मइमया; बहुसो अपडिण्ण, भगवया एवं रीयंति त्ति बेमि // 498 // णवमं अज्झयणं बीओद्देसो समत्तो॥ तणफासे, सीयफासे, तेउफासे य, दंसमसगे य; अहियासए सया समिए, फासाई विरूवरूवाई / / 499 // अह दुच्चरलाढमचारी, वज्जभूमिं च सुब्भभूमिं च; पंतं सेज्ज सेविंसु, आसणगाणि चेव पंताणि।।५००॥लाढेहिं तस्सुवसग्गा, बहवे जाणवया लूसिंसु; अह लूहदेसिए भत्ते, कुक्कुरा तत्थ हिंसिंसु णिवइंसु // 501 // अप्पे जणे णिवारेइ, लूसणए सुणए दसमाणे; छुछुकारंति आहेसु 'समणं कुक्कुरा दसंतु' त्ति |502 / / एलिक्खए जणे भुज्जो, बहवे वजभूमि फरुसासी; लडिं गहाय णालियं, समणा तत्थ य विहरिसु।।२०३||एवं पि तत्थ विहरंता, पुट्ठपुव्वा अहेसि सुणए हिं; . संतुंचमाणा सुणएहिं, दुच्चरगाणि तत्थ लाढेहिं // 504 // णिहाय दंडं पाणेहि, तं कायं वोसिज्जमणगारे / / अह गामकंटए भगवं, ते अहियासए अभिसमेचा // 505 // णाओ संगामसीसे वा, पारए तत्थ से महावीरे / एवं पि तत्थ लाढेहिं, अलद्धपुवो वि एगया गामो // 506 / / उवसंकमंतमपडिण्णं, गामंतियंपि अप्पत्तः पडिणिक्वमित्तु लूसिंसु, एयाओ परं पलेहित्ति // 507 // हयपुव्वो तत्थ दंडेण, अदुवा मुट्ठिणा, अदु कुंताइफलेणं; अदु लेलुणा कवालेणं, हंता हंता बहवे कंदिसु // 508 // मंसाइ छिण्णपुव्वाई,उटुंभिया एगया काय; परीसहाई लुंचिंसु,अदुवा पंसुणा उवकरिंसु // 509 / / उच्चालइय णिहणिंसु, अदुवा आसणाओ खलइंसु; वोसटकाए पणयासी, दुक्खस हे भगवं अपडिण्णे // 510 // सूरो संगामसीसे व, संवुडे तत्थ से महावीरे, पडिसेवमाणे फरुसाई, अचेले भगवं रीइत्था // 511 // एस विही अणुकंतो, माहणेण मईमया; बहुसो अपडिण्गेण भगवया एवं रीयंति, ति बेमि // 512 // णवमं अज्झयणं तइओद्देसो समत्तो॥