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________________ समवाओ स० 87 से 92 387 चरमंते एस णं सत्तासीई जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे प० / छण्हं कम्मपयडीणं आइमउवरिल्लवजाणं सत्तासीई उत्तरपयडीओ प० / महाहिमवंतकूडस्स णं उवरिल्लाओ चरमंताओ सोगंधियस्स कंडस्स हेडिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीइ जोयणसयाई अबाहाए अंतरे प० / एवं रुप्पिकूडस्स वि // 87 // एगमेगस्स णं चंदिमसूरियस्स अट्ठासीइ अट्ठासीइ महग्गहा परिवारो प० / दिहिवायस्स णं अट्ठासीइ सुत्ताई पण्णत्ताई, तं जहा-उज्जुसुयं परिणयापरिणयं एवं अट्ठासीइ सुत्ताणि भाणियव्वाणि जहा णंदीए / मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरमंताओ गोथूभस्स आवास. पव्वयस्स पुरथिमिल्ले चरमंते एस णं अट्ठासीइं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे प० / एवं चउसु वि दिसासु णेयव्वं / बाहिराओ उत्तराओ णं कठ्ठाओ सूरिए पढमं छम्मासं अयंमाणे चोयालीसइमे मंडलगए अट्ठासीइ एगसट्ठिभागे मुहुत्तस्स दिवसखेत्तस्स णिवुड्ढत्ता रयणिखेत्तस्स अभिणिबुड्ढेत्ता सूरिए चारं चरइ। दक्षिणकट्ठाओ णं सूरिए दोचं छम्मासं अयमाणे चोयालीसइमे मंडलगए अट्ठासीई एगसट्ठिभागे मुहुत्तस्स रयणिखेत्तस्स णिवुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिणिबुड्डित्ता णं सूरिए चारं चरइ // 88 // उसमे णं अरहा कोसलिए इमीसे ओसप्पिणीए तइयाए सुसमदूसमाए समाए पच्छिमे भागे एगूणणउइए अद्धमासेहिं सेसेहिं कालगए जाव सव्व. दुक्खप्पहीणे / समणे भगवं महावीरे इमीसे ओसप्पिणीए चउत्थाए दसमसुसमाए समाए पच्छिमे भागे एगूणणउइए अद्धमासेहिं सेसेहिं कालगए जाव सव्वदुक्खप्प. हीणे / हरिसेणे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी एगूणणउई वाससयाई महाराया होत्था संतिस्स णं अरहओ एगूणणउई अन्जासाहस्सीओ उक्कोसिया अन्नासंपया होत्था // 89 / / सीयले णं अरहा णउई धणूइं उ8 उच्चत्तेणं होत्था। अजियस्स णं अर. हओ णउई गणा णउई गणहरा होत्था / एवं संतिस्स वि / सयंभुस्स णं वासुदेवस्स गउइ वासाइं विजए होत्था / सव्वेसि णं वट्टवेयड्डपव्वयाणं उवरिल्लाओ सिहरतलाओ सोगंधियकंडस्स हेछिल्ले चरमंते एस णं णउइ जोयणसयाई अबाहाए अंतरे प० // 90 // एकाणउई परवेयावच्चकम्मपडिमाओ पण्णत्ताओ / कालोए णं समुद्दे एकाणउई जोयणसयसहस्साई साहियाई परिक्खेवेणं प० / कुंथुस्स णं अरहओ एकोणउई आहोहियसया होत्था ।आउयगोयवज्जाणं छण्हं कम्मपयडीणं एकाणउई उत्तरपयडीओ पण्णत्ताओ॥९१॥ बाणाउई पडिमाओ पण्णत्ताओ / थेरे णं इंदभूई
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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