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________________ 388 अंग-पविटु सुत्ताणि बाणउइ वासाई सघाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे / मंदरस्स णं पव्वयस्स बहुमज्झ. देसभायाओ गोथूभस्स आवासपव्वयस्स पञ्चत्थिमिल्ले चरमंते एस णं बाणउई जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे प० / एवं च उण्हं वि आवासपव्वयाणं / / 92 // चंदप्पहस्स णं अरहओ तेणउई गणा तेणउई गणहरा होत्था / संतिस्स णं अरहओ तेणउई चउद्दसपुव्विसया होत्था / तेणउइ मंडलगए णं सूरिए अइवट्टमाणे वा णिवट्टमाणे वा समं अहोरत्तं विसमं करे।।।९३||णिसहणीलवंतियाओणं जीवाओ चउण उइ जोयणसहस्साई एकं छप्पणं जोयणसयं दोण्णि य एगूणवीसइभागे जोयणस्स आयामेणं प० / अजियस्स णं अरहओ चउणउइ ओहिणाणिसया होत्था / / 94 / / सुपासस्स णं अरहओ पंचाणउइ गणा पंचाणउइ गणहरा होत्था। जंबुद्दीवस्स णं दीव. स्स चरमंताओ चउद्दिसिं लवणसमुहं पंचाणउई पंचाणउई जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता चत्तारि महापायालकलसा प० तं०-वलयामुहे केऊए जूयए ईसरे। लवणसमुहस्स उभओ पासं पिपंचाणउयं पंचाणउयं पदेसाओ उन्वेहुस्सेहपरिहाणीए प० / कुंथू णं अरहा पंचाणउइ वाससहस्साई परमाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे जाव प्पहीणे / थेरे णं मोरियपुत्ते पंचाणउइ वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे जाव प्पहीणे / / 95 // एगमेस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स छण्णउई छण्णउई गामकोडीओ होत्था / वाउकुमाराणं छण्णउइ भवणावाससयसहस्सा प० / ववहारिए णं दंडे छण्णउइ अंगुलाई अंगुलमाणेणं / एवं धणू णालिया जुगे अक्खे मुसले वि हु। अभितरओ आइमुहुत्ते छण्णउइअंगुलछाए प० // 96 // मंदरस्स णं पव्वयस्स पचत्थिमि ल्लाओ चरमंताओ गोथूभस्स णं आवासपव्ययस्स पञ्चत्थिमिल्ले चरमंते एस णं सत्ताणउइ जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते / एवं चउदिसि पि / अट्ठण्हं कम्म. पयडीणं सत्ताणउइ उत्तरपयडीओ पण्णत्ताओ। हरिसेणे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी देसूणाई सत्ताणउइ वाससयाई अगारमज्झे वसित्ता मुंडे भवित्ता णं जाव पव्वइए // 97 // गंदणवणस्स णं उवरिल्लाओ चरमंताओ पंडुयवणस्स हे हिल्ले चरमंते एस णं अट्ठाणउइ जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते / मंदरस्त णं पव्वयस्स पञ्चस्थिमिल्लाओ चरमंताओ गोथूभस्स आवासपव्वयस्स पुरथिमिल्ले चरमंते एस णं अट्ठाणउइ जोयणसहस्साई अचाहाए अंतरे प० / एवं चउदिसि पि / दाहिणभरहडस्स णं धणुप्पिढे अट्ठाणउइ जोयणसयाई किंचूणाई आयामेणं पण्णत्ते / उत्तराओ
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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