________________ 22 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि - धूताक्खं णाम छठें अज्झयणं . . ओबुज्झमाणे इह माणवेसु आघाइ से गरे, जस्सिमाओ जाइओ सव्वओं सुपडिलेहियाओ भवंति, आघाइ से णाणमणेलिसं // 334 // से किट्टइ तेसिं समु. ट्ठियाणं णिक्खित्तदंडाणं समाहियाणं पण्णाणमंताणं इह मुत्तिमग्गं, एवं एगे महावीरा विप्परक्कमाते, पासह एगे अविसीयमाणे अणतपण्णे // 335 / / से बेमि-से जहावि कुम्मे हरए विणिविट्ठचित्ते पच्छण्णपलासे उम्मग्गं से णो लहइ // 336 // भंजगा इव सण्णिवेसं णो चयंति, एवं एगे अणेगरूवेहिं कुलेहिं जाया, रूवेहिं सत्ता, कलुणं थणंति. णियाणओ ते ण लहंति मुक्खं // 337 // अह पास तेहिं कुलेहिं आयत्ताएं बाया // 338 // गंडी अहवा कोढी, रायंसी अवमारियं / काणियं झिमियं चेव, कुणियं खुज्जियं तहा // उदरिं पास मूयं च, सूणिअं च गिलासिणिं, वेवई पीढसपि च, सिलिवयं महुमेहणिं सोलस एए रोगा, अक्खाया अणुपुव्वसो, अह णं फुसंति आयंका, फासा य असमंजसा // मरणं तेसिं संपेहाए, उववायं चवणं च णचा; परियागं च संपेहाए, तं सुणेह जहा तहा / / 339 // संति पाणा अंधा तमंसि वियाहिया; तामेव सई असई अइ अच उच्चावयफासे पडिसंवेएइ, बुद्धेहिं एवं पवेइयं // 340 / / संति पाणा वासगा, रसगा उदए उदएचरा आगासगमिणो पाणा पाणे किलेसंति // 341 // पास लोए महन्मयं // 342 // बहुदुक्खाहु जंतवो / / 343 / / सत्ता कामेसु माणवा, अबलेण वह गच्छंति सरीरेणं पभंगुरेण // 344 // अट्टे से बहुदुक्खे, इइ बाले पकुवइ एए रोगा बहु णवा, आउरा परियावए // 345 // णालं पास, अलं तवेएहिं / एयं पास मुणी ! महब्भयं, णाइवाए ज कंचणं / / 346 / / आयाण भो ! सुस्सूस भो ! धूयवायं पवेदइस्मामि इह खलु अत्तत्ताए तेहिं-तेहि कुलेहिं अभिसेणए, अभिसंभूया, अभिसंजाया, अभिणिव्वट्टा, अभिसंवुड्डा, अभिसंबुद्धा अभिगिकता अणुपुवेणं महामुणी // 347 // तं परक्कमंतं परिदेवमाणा माणेचयाहि इइ ते वयंति; "छंदोवणीया अज्झोववण्णा," अकंदकारी जणगा रुयति / अतारिसे मुणी णय ओहंतरए, जणगा जेण विप्पजढा // 348 / / सरणं तत्थ णो समेइ कहं णु णाम से तत्थ रमइ ? एयं णाणं सया समणुवासिज्जासि ति बेमि // 349 // छठें अज्झयणं पढमोइसो समत्तो / आउरं लोयमायाए चहत्ता पुव्वसंजोगं, हिचा उवसम, वसित्ता बंभचेरंमि,