________________ 14 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि अणोमदंसी णिसण्णे पावेहि कम्मेहिं // 190 // कोहाइमाण हणिया य वीरे लोभरस पासे गिरयं महंत / तम्हा य वीरे विरए वहाओ, छिंदिज्ज सोयं लभूय गामी ॥१९१||गथं परिण्णाय इहज्ज वीरे, सोयं परिणाय चरिज्ज दंते / उम्मज्ज लद्धं इह माणवेहि, णो पाणिणं पाणे समारमिज़्जासि-त्ति बेमि // 192 // तइयं अज्झयणं बीओद्देसो समत्तो // संधि लोगस्स जाणित्ता // 193 // आयओ बहिया पास, तम्हा ण हताणविधायर // 194 // जमिणं अण्णमण्णवितिगिच्छाए पडिलेहाए ण करेइ पावं कम्म किं तत्थ मुणी कारणं सिया ? समयं तत्युवेहाए अपाणं विप्पसायए // 195 // अणण्णपरमं णाणी णो पमाए कयाइवि / आयगुत्ते सया धीरे, जायामायाइ नावए // 196 // विरागं रूवेहिं गठिज्जा महया खुड्डए हिं वा // 197 / / आगई गई परिण्णाय दोहिंवि अतेहिं अदिस्समाणेहिं से ण छिज्जइ, ण भिज्जइ, ण डज्जइ ग हम्मइ कंचणं सव्वलोए // 198|| अवरेण पुट्विं ण सरंति एगे, किमस्सतीतं ? किंवाऽऽगमिस्सं ? भासंति एगे इह माणधाओ. जमस्सतीतं तं आगमिस्सं // 199 // णाई यमणय आगमिस्सं, अर्द्ध णिअच्छंति तहागया उ; विहयकप्पे एयाणपस्सी; णिज्झोसइत्ता खवए महेसी // 200 // का अरई ? के आणंदे ? एत्थंपि अग्गहे चरे। सव्वं हासं परिच्चज्ज, अलीणगुत्तो परिव्वए // 201 // पुरिसा! तुममेव तुम मित्तं, किं बहिया मित्तमिच्छसि ? // 202 // ज जाणिज्जा उच्चालइयं तं जाणिज्जा दूरालइयं, जं जाणिज्जा दूरालइयं तं जाणेज्जा उच्चालइयं / / 203 // पुरिसा ! अत्ताणमेवं अभिणिगिज्झ एवं दुक्खा पमुच्चसि // 204 / / पुरिसा ! सच्चमेव समभिजाणाहि, सच्चस्साणाए से उवट्ठिए मेहावी मारं तरइ सहिओ धम्ममायाय सेयं समणुपस्सइ / / 205 // दुहओ, जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए, जसि एगे पमायति // 206 // सहिओ दुक्खमत्ताए पुट्ठो णो झंझाए; पासिमं दविए लोए लोयालोयपवंचाओ मुच्चइ त्ति बेमि // 207 // तइओसो समत्तो / से वंता कोहं च, माणं च, माय च, लोभं च, एयं पॉसगस्स दसणं, उवरयसत्थस्स पलियंतकरस्स आयाणं सगडन्भि. // 208 // जे एग जाणइ से सव्वं जाणइ, जे सव्वं जाणइ से एग जाणइ // 209 // सव्वओ पमचस्स भयं, सव्वओ अप्पमत्तस्स णत्थि भयं // 21 // जे एगं णामे से बहुं णामे,