________________ 8. अंगपविट्ठ सुत्ताणि परिहायमाणेहिं, रसणापरिणाणेहिं परिहायमाणेहि, फासपरिणाणेहिं परिहायमाणेहिं, अभिकंतं च खलु वयं संपेहाए तओ से एगया मूढभावं जणयइ // 6 // जेहिं वा सद्धिं संवसइ, तेविणं एगया णियगा पुट्विं परिव्वयंति / सो वा ते णियगे पच्छा परिवए जा, णालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा / तुम पि तेसिं णालं ताणाए वा, सरणाए, वा / से ण हासाए, ण किड्डाए, ण रइए, ण विभूसाए // 68 // इच्चेवं समुट्ठिए अहोविहाराए अंतरं च खलु इमं संपेहाए धीरो मुहुत्तमवि णो पमायए / वओ अच्चेइ जोव्वणं व // 69|| जीविए इह जे पमत्ता / से हंता, छेत्ता, भेत्ता, लुपित्ता, विलुपित्ता, उहवित्ता, उत्तासइत्ता, अकडं करिस्सिामित्ति मण्णमाणे ||70|| जेहिं वा सद्धिं संवसइ ते वा णं एगया णियगा तं पुब्धि पोसेंति, सो वा ते णियगे पच्छा पोसिज्जा। णालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा / तुमंपि तेसिं णालं ताणाए वा सरणाए वा / / 71 // उवाइयसेसेण वा संणिहिसंणिचओ किब्जइ, इहमेगेसिं असंजयाणं भोयणाए। तओ से एगया रोगसमुप्पया समुप्पजति // 72 // जेहिं वा सद्धिं संवसइ ते वाणं एगया णियगा तं पुचि परिहरंति, सो वा ते णियगे पच्छा परिहरिजा / णालं ते तव नाणाए वा सरणाए वा तुमं पि तेसिं णाल ताणाए वा सरणाएं वा // 73 // जाणितु दुक्ख पत्तय सायं, अणभिक्वंतं च खलु वयं संपेहाए खणं जाणाहि पंडिए // 74 // जाव सोयपण्णाणा अपरिहीणा, णेत्तपण्णाणा अपरिहीणा, घाणपण्णाणा अपरिहीणा, जीहपण्णाणा अपरिहीणा, फरिसपण्णाणा अपरिहीणा, इच्चेएहिं विरूवरूवेहिं पण्णाणेहिं अपरिहायमाणेहिं आयर्से सम्म समगुवासिज्जासि त्ति बेमि // 7 // पढमोइसो समत्तो।। अरई आउट्टे से मेहावी; खणंसि मुक्के // 76 / / अणाणाए पुट्ठा वि एगे णियदृति मंदा मोहेण पाउडा // 77 // “अपरिग्गहा भविस्सामो" समुट्ठाए लदे कामे अभिगाहइ, अणाणाए मुणिणो, पडिलेहंति, एत्थं मोहे पुणो-पुणो सण्णा, णो हवाए णो पाराए // 78 // विमुत्ता हु ते जणा, जे जणा पारगामिणो लोभ अलोभेण दुगंछमाणे लद्धे कामे णाभिगाहइ, विणावि लोभं णिक्खम्म एस अकम्मे जाणइ पासइ / पडिलेहाए णावकंखइ, एस अणगारित्तिपयुच्चइ // 79 // अहोयराओ परितप्पमाणे कालाकालसमुट्ठाई, संजोगट्ठी, अट्ठालोभी, आलुपे, सहसाकारे, विणिविट्ठचित्ते एत्थ, सत्थे पुणो-पुणो // 80 // से आयबले, से गाइबले, से सयणबले,