________________ आयारो सु. 1 अ. 2 उ. 1 सयमेव वाउसत्थं समारंभइ,अण्णेहिं वा वाउसत्यं समारंभावेइ अण्णे वा वाउसत्य समारंभंते समणुजाणइ, तं से अहियाए तं से अबोहीए // 57 // से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाए सोचा भगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णायं भवङ्एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु गरए / इच्चत्थं गढिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वाउकम्मसमारंभेणं वाउसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ // 58 // से बेमि, संति संपाइमा पाणा, आहच संपयंति य फरिसं च खलु पुट्ठा एगे संघायमावज्जति / जे तत्थ संघायमावति, ते तत्थ परियावजंति, जे तत्थ परियावजंति, ते तत्थ उद्दायति / / 59 // एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेए आरंभा अपरिण्णाया भवंति / एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इबेए आरंभा परिणाया भवंति // 60 // तं परिण्णाय मेहावी व सयं वाउसत्थं समा. रंभेज्जा णेवण्णेहिं वाउसत्थं समारंभावेज्जा, णेवण्णे वाउसत्थं समारंभते समणुजाणेज्जा / जस्सेए बाउसत्थसमारंभा परिणाया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे त्ति बेमि // 61 // एत्थं पि जाण उवाईयमाणा जे आयारे ण रमंति, आरंभमाणा षिणयं वयंति, छंदोवणीया, अज्झोववण्णा, आरंभसत्ता पकरंति संगं / / 62 // से वसुमं सव्वसमण्णागयपण्णाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज पावकम्मं णो अण्णेसि।।६३ ते परिणाय मेहावी.णेव सयं उज्जीवणिकायसत्थं समारंभेज्जा, णेवण्णेहिं छज्जीवणिकायसत्थं समारंभावेना, णेवण्णे छज्जीवणिकायसत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा। जस्सेए उज्जीवणिकायसत्थसमारंभा परिणाया भवंति, से हु मुणी परिण्णायकम्मे त्ति बेमि // 64 // सत्तमोसो।।.पढमं अज्झयणं समत्तं / / ... ॥लोगविजनो णामं बीयं अज्झयणं // जे गुणे से मूलट्ठाणे, जे मूलट्ठाणे से गुणे, इइ से गुणही महया परियावेणं पुणो पुणो वसे पमत्ते, तंजहा-माया मे, पिया मे, भाया मे, भइणी मे, भज्जा मे, पुत्ता मे, धूया मे, सुण्हा मे, सहि-सयण-संगंथ-संधुया मे, विवित्तोवगरण-परिवडण-भोयणच्छायणं मे, इचत्थं गढिए लोए वसे पमत्ते॥६५॥ अहो य राओ य परितप्पमाणे, कालाकालसमुट्ठाई, संजोगट्ठी, अट्ठालोभी, आलुपे, सहसाकारे, विणिविट्ठचित्ते एत्थ सत्थे पुणो पुणो // 66 // अप्पं च खलु आउयं इहमेगेसिं माणवाण; तंजहा—सो. थपरिणाणेहि परिहायमाणेहि, चक्खुपरिणाणेहि परिहायमाणेहिं, घाणपरिणाणेहिं