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________________ सूयगडो सु. 2 अ. 6 185 तमुदयं साहयइ ताइ णाई // 24 // अहिंसयं सव्वपयाणुकम्पी धम्मे ठियं कम्मविवेगहेउं / तमायदण्डेहिं समायरंता अबोहिए ते पडिरूवमेयं // 25 // पिण्णागपिण्ड्रीमवि विद्ध सूले केई पएज्जा पुरिसे इमे त्ति / अलाउयं वा वि कुमारए त्ति स लिप्पई पाणिवहेण अम्हं // 26 // अहवा वि विभ्रूण मिलक्खु सूले पिण्णागबुद्धीइ णरं पएज्जा / कुमारगं वा बि अलाबुयं ति ण लिप्पई पाणिवहेण अम्हं // 27 // पुरिसं च विद्धण कुमारगं वा सूलंमि केई पए जायतेए। पिण्णागपिण्ड सइमारुहेत्ता बुद्धाण तं कप्पइ पारणाए // 28 // सिणायगाणं तु दुवे सहस्से जे भोयए णियए भिक्खुयाणं / ते पुण्णखंधं सुमहं जिणित्ता भवंति आरोप्प महंत सत्ता // 29 / / अजोगरूवं इह संजयाणं पावं तु पाणाण पसज्झ काउं। अबोहिए दोण्ह वितं असाहु वयंति जे. यावि पडिस्सुणंति।।३०॥उड़े अहे यं तिरियं दिसासु विण्णाय लिंगं तसथावराणं / भूयामिसंकाइ दुगुंछमाणे वए करेजा व कुओ विहऽत्थि ? // 31 // पुरिसे त्ति विण्णत्ति ण एवमत्थि अणारिए से पुरिसे तहा हु / को संभवो ? पिण्णगपिण्डियाए वाया वि एसा बुइया असच्चा // 32 // वायाभियोगेण जमावहेज्जा णो तारिसं वायमुदाहरेना / अट्ठाणमेयं वयणं गुणाणं णो दिक्खिए बूय मुरालमेयं // 33 // लद्धे अटे अहो एव तुब्भे जीवाणुभागे सुविचिंतिए व / पुव्वं समुदं अवरं च पुढे उलोइए पाणितले ठिए वा // 34 // जीवाणुभागं सुविचिंतयंता आहा. रिया अण्णविहीए सोहिं / ण वियागरे छण्णपओपजीवी एसोऽणुधम्मो इह संजयाणं // 35 // सिणायगाणं तु दुवे सहस्से जे भोयए णियए भिक्खुयाणं / असंजए लोहियपाणि से ऊ णियच्छई गरिहमिहेव लोए॥३॥थूलं उरभं इह मारियाणं उद्दिभत्तं च पगप्पएत्ता। तं लोणतेल्लेण उवक्खडेत्ता सपिप्पलीयं पगरंति मंसं // 37 // तं भुंजमाणा पिसियं पभूयं णो उवलिप्पामु वयं रएणं / इच्चेवमाहंसु अणज्जधम्मा अणारिया बाल रसेसु गिद्धा // 38 // जे यावि भुंजंति तहप्पगार सेवंति ते पावमजाणमाणा / मणं ण एयं कुसला करेंति वाया वि एसा बुइया उ मिच्छा // 39 // सव्वेसि जीवाण दयट्ठयाए सावज्जदोसं परिवजयंता / तस्संकिणो इसिणो णायपुत्ता उद्दिट्ठभत्तं परिवजयंति // 40 // भूयाभिसंकाए दुगुंछमाणा सव्वेसि पाणाण णिहाय दण्डं / तम्हा ण भुंजंति तहप्पगारं एसोऽणुधम्मो इह संजयाणं // 41 / / णिग्गंथधम्मम्मि इमं समाहिं अस्सिं सुठिच्चा अणिहे चरेज्जा / बुद्धे मुणी सीलगुणोववेए
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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