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________________ 184 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि बेमि // 6 // सीओदग सेवउ बीयकाय आहायकम्मं तह इत्थियाओ। एगंतचारिस्सिह अम्ह धम्मे तवस्सिणो णाभिसमेइ पावं ॥७॥सीओदगं वा तह बीयकायं आहायकम्मं तह इत्थियाओ / एयाइं जाणं पडिसेवमाणा अगारिणो अस्समणा भवंति // 8 // सिया य बीओदगइत्थियाओ पडिसेवमाणा समणा भवंतु / अगारिणो वि समणा भवंतु सेवंति ऊ ते वि तहप्पगारं // 9 // जे यावि बीओदगभोइ भिक्खू भिक्खं विहं जायइ जीवियट्ठी / ते णाइसंजोगमविप्पहाय कायोवगा णंतकरा भवंति // 10 // इमं वयं तु तुम पाउकुव्वं पावाइणो गरिहसि सव्व एव / पावाइणो पुढो किट्टयंता सयं सयं दिट्ठि करेंति पाउ॥११॥ते अण्णमण्णस्स उ गरहमाणा अक्खंति भो समणा माहणा य / सओ य अत्थी असओ य णत्थि गरहामु दिहिँ ण गरहामु किंचि // 12 ॥ण किंचि रूवेणऽभिधारयामो सदिट्ठिमग्गं तु करेमु पाउं / मग्गे इमे किट्टिए आरिए हिं अणुत्तरे सप्पुरिसेहिं अंजू / / 13 // उड्ढे अहे यं तिरियं दिसासु तसा य जे थावर जे य पाणा / भूयाहिसंकाभिदुगुंछमाणा णो गरहई बुसिमं किंचि लोए // 14 // आगंतगारे आरामगारे समणे उ भीए ण उवेइ वासं / दक्खा हु संती बहवे मणुस्सा ऊणाइरित्ता य लवालवा य // 15 / / मेहाविणो सिक्खिय बुद्धिमंता सुत्तेहि अत्थेहि य णिच्छयण्णा / पुच्छिसु मा णे अणगार अण्णे इइ संकमाणो ण उवेइ तत्थ // 16 ॥णो कामकिचा ण य बालकिच्चा रायाभिओगेण कुओ भएणं ? वियागरेज पसिणं ण वा वि सकामकिचेणिह आरियाणं // 17 // गंता च तत्था अदुवा अगंता वियागरेजा समियासुपण्णे / अणारिया दंसणओ परित्ता इइ संकमाणो ण उवेइ तत्थ / / 18 // पण्णं जहा वणिए उदयट्ठी आयस्स हेडं पगरेइ संगं / तओवमे समणे णायपुत्ते इच्चेव मे होइ मई वियक्का // 19 // णवं ण कुजा विहुणे पुराणे चिचाऽमई ताइ य साह एवं / एयावया बम्भवइ त्ति वुत्ता तस्सोदयट्ठी समणे त्ति बेमि // 20 // समारभंते वणिया भूयगामं परिग्गहं चेव ममायमाणा / ते णाइसंजोगमविप्पहाय आयस्स हेडं पगरेंति संगं / / 21 // वित्तेसिणो मेहुणसंपगाढा ते भोयणट्ठा वणिया वयंति / वयं तु कामेसु अज्झोववण्णा अणारिया पेमरसेसु गिद्धा // 22 // आरम्भगं चेव परिग्गहं च अविउस्सिया णिस्सिय आयदण्डा / तेसिं च से उदए जं वयासी चउरंतणंताय दुहाय णेह // 23 // णेगंति णचंति य ओदए सो वयंति ते दो वि गुणोदयम्मि / से उदए साइमणंतपत्ते
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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