________________ 158 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि त्ति आहिए॥७॥अहावरे सत्तमे किरियट्ठाणे अदिण्णादाणवत्तिए त्ति आहिज्जइ / से जहाणामए-केइ पुरिसे आय हेउं वा जाव परिवारहेउं वा सयमेव अदिणं आदियइ अण्णेणं वि अदिण्णं आदियावेइ अदिण्णं आदियंत अण्णं समणुजाणइ, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज ति आहिजइ / सत्तमे किरियट्ठाणे अदिण्णादाणवत्तिए त्ति आहिए // 8 // अहावरे अट्ठमे किरियट्ठाणे अज्झत्थवत्तिए त्ति आहिज्जइ / से जहाणामएकेइ पुरिसे णत्थि णं केइ किंचि विसंवादेइ सयमेव हीणे दीणे दुढे दुम्मणे ओहय. मणसंकप्पे चिंतासोगसागरसंपविढे करयलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए भूमिगय. दिट्ठिए झियाइ, तस्स णं अज्झत्थया आसंसइया चत्तारि ठाणा एवमाहिति / तं जहा-कोहे माणे माया लोहे। अज्झत्थमेव कोहमाणमायालोहे / एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावजं ति आहिज्जइ / अट्ठमे किरियट्ठाणे अज्झत्यवत्तिए त्ति आहिए / / 9 / / अहावरे णवमे किरियट्ठाणे माणवत्तिए त्ति आहिज्जइ / से जहाणामए-केइ पुरिसे जाइमएण वा कुलमएण वा बलमएण वा रूवमएण वा तवमएण वा सुयमएण वा लाभमएण वा इस्तरियमएण वा पण्णामएण, वा अण्णयरेण वा मयहाणेणं मत्ते समाणे परं हीलेइ शिंदेइ खिंसइ गरहइ परिभवइ अवमण्णेइ, इत्तरिए अयं, अहमंसि पुण विसिट्ठजाइकुलबलाइगुणोववेए / एवं अप्पाणं समुक्कस्से, देहच्चुए कम्मबिइए अवसे पयाइ / तं जहा-गन्भाओ गभं 4 जम्माओ जम्मं माराओ मारं णरगाओ णरगं चण्डे थद्धे चवले माणी यावि भवइ / एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज ति आहिज्जइ। णवमे किरियट्ठाणे माणवत्तिए त्ति आहिए // 10 // अहावरे दसमे किरियट्ठाणे मित्तदोसवत्तिए त्ति आहिज्जइ / से नहाणामए-केइ पुरिसे माईहिं वा पिईहिं वा भाईहिं वा भइणीहिं वा भज्जाहिं वा धूयाहिं वा पुत्तेहिं वा सुण्हाहिं वा सद्धिं संवसमाणे तेसिं अण्णयरंसि अहालहुगंसि अवराहसि सयमेव गरुयं दण्डं णिवत्तेइ / तं जहा-सीओदगवियडसि वा कायं उच्छोलित्ता भवइ, उसिणोदगवियडेण वा कायं ओसिंचित्ता भवइ, अगणिकायेणं काय उवडहित्ता भवइ, जोत्तेण वा वेत्तेण वा णेत्तेण वा तयाइ वा [ कण्णेण वा छियाए वा] लयाए वा (अण्णयरेण वा दवरएण) पासाई उद्दालित्ता भवइ, दण्डेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलूण वा कवालेण वा कायं आउट्टित्ता भवइ। तहप्पगारे .पुरिसजाए संवसमाणे दुम्मणा भवइ, पवसमाणे सुमणा भवइ, तहप्पगारे पुरिसजाए दण्डपासी