________________ अंग-पविट्ठ सुत्ताणि सत्यं समारंभतेऽवि अण्णे ण समगुजाणेजा, जस्सेते उदयसत्थसमारंभा परिणाया भवंति से हु मुणी परिणायकम्मे त्ति बेमि॥२७॥ पढमं अज्झयणं तइओद्देसो / / से बेमि-णेव सयं लोयं अब्भाइक्खेज्जा, णेव अत्ताण अब्भाइक्खेजा, जे लोग अब्भाइक्खइ, से अत्ताणं अब्भाइक्खइ, जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ, से लोग अब्भाइक्खइ // 28 // जे दीहलोगसत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे; जे असस्थस्स खेयण्णे, से दीहलोगसत्थस्स खेयण्णे // 29 // वीरेहिं एयं अभिभूय दिहूँ, संजएहिं सया जत्तेहिं सया अप्पमत्तेहिं // 60 // जे पमत्ते गुणढिए से हु दंडे त्ति पवुच्चइ / तं परिणाय मेहावी इयाणिं णो जमहं पुवमकासी पमाएणं // 31 // लजमाणा पुढो पास-अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा जमिण विरूवरूवेहिं सत्थेहिं अगणिकम्मसमारंभेणं अगणिसत्थं समारंभमाणे, अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ // 32 // तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया, इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए, जाइमरणमोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं से सयमेव अगणिसत्थं समारंभइ,अण्णेहिं वा अगणिसत्थं समारंभावेइ अण्णेवा अगणिसत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ / तं से अहियाए तं से अबोहिए // 33 // से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाय सोचा, खलु भंगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णायं भवइ. एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए / इच्चत्थं गढिए लोए जमिणं विरूवरूवेहिं सत्येहिं अगणिकम्मसमारंभेणं अगणिसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ // 34 // से बेमि, संति पाणा, पुढविणिस्सिया, तणगिस्तिया, पत्तणिस्सिया, कहणिस्सिया, गोमयणिस्सिया; कयवरणिस्सिया; सन्ति संपाइमा पाणा, आहच्च संपयंति। अगणिं च खलु पुट्ठा, एगे संघायमावज्जति, जे तत्थ संघायमावजंति ते तत्थ परियावजंति, जे तत्थ परियावजंति ते तत्थ उद्यायति॥३५॥ एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेए आरंभा अपरिणाया भवंति एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेए आरंभा परिणाया भवंति // 36 // तं परिणाय मेहावी व सयं अगणिसत्थं समारंभेजा, णेवण्णेहिं अगणिसत्थ समारंभावेज्जा, अगणिसत्थं समारंभमागे अण्णे न समणुजाणेजा। जस्सेते अगणिकम्मसमारंभा परिणाया भवंति, से हु मुणी परिण्णायकम्मे त्ति बेमि // 37 // चउत्थोसो।। तं णो करिस्सामि समुट्ठाए मंत्ता मइमं, अभयं विइत्ता, तं जे णो करए, एसो.